Site Network: Home | shuaibsamar | Gecko and Fly | About

न्यायालय अपर सत्र न्यायाधीश (त्वरित न्यायालय) कक्ष सं0-3, बरेली।

उपस्थित: श्री विनय खरे, (एच0जे0एस0)

1- सत्र वाद सं0- 242/07

राज्य बनाम सैयद मुबारिक
धारा 124 (क) भा.द.सं.
थाना - सी0बी0 गंज, बरेली
मु0अ0सं0-1240/06

2- सत्र वाद सं0- 790/07

राज्य बनाम सैयद मुबारिक
धारा 205, 419 भा.द.सं.
थाना - सी0बी0 गंज, बरेली
मु0अ0सं0-1240/06

निर्णय

सत्र वाद सं0 242/07 अपराध सं0 1240/06 धारा 124(क) भा.द.सं. में थाना सी0बी0गंज, जिला बरेली द्वारा अभियुक्त सैयद मुबारिक के विरूद्ध धारा 124(क) भा.द.सं. में आरोप-पत्र पे्रषित करने पर तथा दिनांक 15.2.07 को तत्कालीन न्यायिक मजिस्टेªट तृतीय, बरेली द्वारा सत्र सुपुर्द करने पर तथा दिनांक 30.3.07 को तत्कालीन माननीय जिला एवं सत्र न्यायाधीश, बरेली द्वारा विधिपूर्ण निस्तारण हेतु इस न्यायालय में अन्तरित करने पर इसका विचारण प्रारम्भ हुआ।

सत्र वाद सं0 790/07 अपराध सं0 1240/06 धारा 205, 419 भा.द.सं. में थना सी0बी0गंज, बरेली द्वारा अभियुक्त सैयद मुबारिक के विरूद्ध आरोप-पत्र प्रस्तुत करने पर तथा दिनांक 9.8.07 को तत्कालीन न्यायिक दण्डाधिकारी तृतीय, बरेली द्वारा सत्र सुपुर्द करने पर तथा दिनांक 13.9.07 को तत्कालीन माननीय जिला एवं सत्र न्यायाधीश, बरेली द्वारा इस न्यायालय में विधिपूर्ण निस्तारण हेतु अन्तरित करने पर इसका विचारण प्रारम्भ हुआ।

दिनांक 3.11.09 को मेरे द्वारा यह पाते हुए कि इन दोनों ही मामलों का विचारण मेरे पूर्वाधिकारी द्वारा एकीकृत कर प्रारम्भ किया जा रहा था परन्तु एकीकृत विचारण करने का स्पष्ट आदेश उनके द्वारा पारित नहीं किया गया। मेरे द्वारा दोनों ही पत्रावलियों को एकीकृत कर एकीकृत किया गया तथा लीडिंग पत्रावली के रूप में सत्र वाद सं0-242/07 विचारित की गई। इस प्रकार इन दोनों ही सत्र मामलों का विचारण मेरे पूर्वाधिकारी व मेरे द्वारा एकीकृत कर किया गया है।
संक्षिप्तः अभियोजन कथानक यह है कि दिनां 20.8.06 को समय 6ः30 बजे सायंकाल निरीक्षक स्थानीय अभिसूचना इकाई मय आर0के0 यादव के वास्ते करने संग्रह सूचना थाना सी0बी0गंज में मौजूद था कि सूचना प्राप्त हुई कि एक व्यक्ति जो अपने को काश्मीरी बताता है। आस-पास के मुस्लिम बाहुल्य ग्राम तिलियापुर बन्डिया व सनैयारानी आदि में घूम-घूमकर विद्वेष एवं घृणा फैलाने वाली बातें प्रचारित कर रहा है और अपने को काश्मीर का रहने वाला बताता है। इस समय यह व्यक्ति सनैयारानी ग्राम में मौजूद है। इस सूचना पर स्वयं वादी निरीक्षक मय हमराही ग्राम सनैयारानी पहुंचे तो वहां बाबू खां मेवाती के घर के बाहर खुली जगह में 15-20 व्यक्ति जमा थे। हम लोग भी उन्हीं में शामिल हो गय। उन व्यक्तियों में से एक व्यक्ति बुलन्द आवाज में कह रहा था कि भारतीय सेना ने भारतीय सरकार के इशारे पर मेरे गांव के 250 निर्दोष मुस्लिमों को खौफनाक ढंग से गोलियां बरसा कर आतंकवादी बताकर मौत के घाट उतार दिया है। जिसमें मेरे माता, पिता, भाई, बहन, बीवी-बच्चे शहीद हो गये हैं। मैं किसी तरह से जान बचाकर भाग आया हूं। यह बात सुनकर मैं चुपचाप वापस बिना शक पैदा किये थाना सी0बी0गंज आया। थाना सी0बी0गंज से थानाध्यक्ष सत्यदेव सिंह सिद्धू व एस0आई0 मुन्ना सिंह व कां0 374 विनोद कुमार, व कां0 बिजेन्द्र कुमार मय जीप सरकारी कं थाने से रवाना होकर ग्राम सनैयारानी आया और उक्त व्यक्ति को बाबू खां के घर के पास समय करीब 6ः30 बजे सायं पकड़ लिया। नाम-पता पूछा और जमा तलाशी ली तो उसने अपना नाम सैयद मुबारिक पुत्र नवाब हुसैन निवासी चन्दनपुर महमूद तहसील रानीबाग, जिला पुन्छ काश्मीर बताया।

जमा तलाशी से उसके पास से पहने कपड़े एवं 100/- रूपये के अलावा अन्य कोई वस्तु बरामद नहीं हुई। उपरोक्त व्यक्ति को धारा 50 सी0आर0पी0सी0 के अनुपालन में कारण गिरफ्तारी बतायी गई कि तुम भारतीय सेना व भारतीय सरकार के विरूद्ध आप अपनी बातो से एक सम्प्रदाय में घृणा एवं विद्वेष की भावना फैला रहे थे। अतः उसको उसके जुर्म धारा 124(क) भा.दं.सं. से अवगत कराते हुए गिरफ्तार किया जाता है। मौके पर मौजूदा व्यक्तियों से गवाही देने को कहा गया तो मौके पर मौजूद अभियुक्त मुबारिक हुसैन की बातो से बहुत उत्तेजित एवं प्रभावित थे, गवाही देने से इन्कार कर दिया। फर्द मौके पर लिखी गई, पढ़कर सुनाकर हमराहीयान की गवाही बनवायी जाती है। गिरफ्तारी मेमो तैयार किया गया। अभियुक्त को गिरफ्तार किया गया व थाने पर लाकर मुकदमा दर्ज कर दिया।

विवेचक नियुक्त हुए। विवेचक द्वारा साक्षियों के साक्ष्य अंकित किये गये। घटना स्थल का नक्शा नजरी बनाया गया। दौरान विवेचना अभियुक्त द्वारा जम्मू काशमीर का पता बताये जाने पर तथा यह ज्ञात हाने पर कि अभियुक्त जनपद सीतार का निवासी है तथा उसके द्वारा बताये गये पतों की जांच की गई तो यह पाया गया कि यह गलत तरीके से जनपद काशमीर का पता पुलिस को बताया था। साक्षियों के साक्ष्य अंकित करने के पश्चात् अभियुक्त के विरूद्ध धारा 124(क) भा.दं.सं. तथा 205/419 भा.दं.सं. में पृथक-पृथक आरोप-पत्र प्रेषित किये गये।

अभियुक्त के विरूद्ध पृथक-पृथक आरोप-पत्रों के सम्बंध में पृथक-पृथक सत्र वाद दर्ज हुए तथा मेरे पूर्वाधिकारी द्वारा सत्र वाद सं0 242/07 में अभियुक्त के विरूद्ध धारा 124(क) भा.दं.सं. में दिनांक 9.10.07 को तथा सत्र वाद सं0 790/07 में दिनांक 9.10.07 को धारा 205,419 भा.द.सं. मंे पृथक-पृथक आरोप विरचित किये गये अभियुक्त ने पृथक-पृथक आरोपों से इन्कार किया तथा विचारण का दावा किया गया।

मेरे पूर्वाधिकारी द्वारा यद्यपि इन दोनों ही मामलों का विचारण एकीकृत कर किया था परन्तु इस सम्बन्ध में कोई आदेश पारित नहीं किया था तथा न्यायालय द्वारा दिनां 3.11.09 को यह पाते हुए एकीकृत करने का स्पष्ट आदेश पारित किया जो कि विचारण के प्रारम्भ से ही लागू होगा।

अभियोजन पक्ष द्वारा अपने कथानक को साबित करने के लिए 11 साक्षी परीक्षित कराये गये। पत्रावली से यह स्पष्ट होता है कि एकीकृत पत्रावली सत्र वाद सं0 790/07 मंे दिनांक 9.1.09 का भ्रमवश पी0डब्लु0-1 के रूप में एस0आई0 तेजीवीर सिंह को परीक्षित कराया गया। अतः ऐसी स्थिति में एस0आई0 तेजवीर सिंह को पी0डब्लु-1ए के रूप में मेरे द्वारा बाद में चिन्हित किया गया जिससे अभियोजन साक्षियों की संख्या में भ्रम की स्थिति उत्पन्न न हो।

अभियोजन साक्षियों द्वारा मुख्य परीक्षा में जिन कथनों को न्यायालय के समक्ष किया है उनका संक्षिप्त विवरण यहां प्रस्तुत किया जा रहा है। प्रतिपरीक्षा में किये गये कथनों को दौरान विवेचना शामिल किया जायेगा।

पी0डब्लु0-1 साक्षी मुन्ना सिंह ने अपने मुख्य परीक्षा में शपथ पर संक्षिप्तः यह कथन किया कि दिनांक 20.8.06 को वह थाना सी0बी0गंज में बतौर उप निरीक्षक तैनात था। उस दिन निरीक्षक महेन्द्र सिंह व अन्य पुलिस कर्मियों के साथ एल0आई0यू0 के निरीक्षक आर0के0 यादव की सूचना पर मौके पर गया तथा वहां पर इकट्ठी भीड़ में वह शामिल हो गये। एक व्यक्ति बुलन्द आवाज में कह रहा था कि भारतीय सेना ने भारतीय सरकार के इशारे पर मेरे गांव के 250 निर्दोष मुस्लिमों को खौफनाक ढंग से गोलियां बरसाकर आतंकवादी बताकर मौत के घाट उतार दिया, जिसमें मेरे माता-पिता, बीवी-बच्चे, भाई, बहन शहीद हो गये है। मैं किसी तरह से जान बचाकर भाग आया हूं। ग्राम सनैया रानी में उक्त व्यक्ति को बाबू खां मेवाती के घर से दिनांक 20.8.06 को पकड़ लिया। पूछताछ करने पर उसने अपना नाम सैयद मुबारिक पुत्र नवाब हुसैन, निवासी चन्दनपुर महमूद तहसील रानीबाग, जिला पुन्छ काशमीर बताया। जमा तलाशी लेने पर उसके पहने कपड़े से 100/- रूपये बरामद हुए तथा भारत सरकार के विरूद्ध एक घृणा एवं विद्वेष की भावना पैदा करने के आरोप में उसे गिरफ्तार किया गया तथा बरामदगी की फर्द बनाई गई तथा गवाहों को गवाही देने के लिए कहा गया तो गवाही देने से इन्कार किया गया। फर्द को प्रदर्शक-1 के रूप में साबित किया है।

पुनः यह भी कथन किया है कि अभियुक्त के पते की विवेचना की गई तो यह पता लगा कि उसका असली पता ग्राम अकवापुर थाना बिस्वां जनपद सीतापुर है तथा वह संदिग्ध प्रकृति का व्यक्ति है। उसका मतदाता पहचान पत्र, राशन कार्ड, जमीन का किसान बही प्राप्त की है। जांच उपरान्त यह पाते हुए कि उसके द्वारा गलत पता बताया गया उसके विरूद्ध धारा 205, 419 भा.द.सं. में आरोप-पत्र प्रेषित किया गया था।

पी0डब्लु0-2 द्वारा धारा 124(क) भा.द.सं. की चिक0एफ0आई0आर को प्रदर्शक-2 के रूप में व कायमी जी0डी0 को प्रदर्शक-3 के रूप में साबित किया है।

पी0डब्लु0-3 द्वारा पी0डब्लु0-1 के कथनों का समर्थन किया है तथा लगभग वही कथन किये गये हैं जो कि उनके द्वारा किये गये हैं।

पी0डब्लु0-4 द्वारा इस मामले की विवेचना करने का कथन किया गया है तथा निर्मित नक्शा नजरी का प्रदर्शक-4 के रूप में व धारा 124(क) भा.द.सं. के आरोप-पत्र को प्रदर्शक-5 के रूप में साबित किया है।

पी0डब्लु0-5 द्वारा पी0डब्लु0-1, पी0डब्लु0-2 द्वारा कथित कथनों का ही समर्थन किया है तथा उन्हीं के समान कथन न्यायालय के समक्ष किये हैं।

पी0डब्लु0-6 याकूब अली पक्ष द्रोही घोषित हुए हैं।

पी0डब्लु0-7 पक्ष द्रोही घोषित हुए हैे।

पी0डब्लु0-8 बाबू खां पक्ष द्रोही घोषित हुए हैं।

पी0डब्लु0-9 द्वारा इस मामले की विवेचना करने का कथन किया है तथा अभियुक्त के बताये गये पतों का तस्दीक करने का कथन किया है व साक्षियों के साक्ष्य अंकित किये व अभियुक्त के विरूद्ध धारा 205, 419 भा.द.सं. के मामले को पाते हुए दाखिल आरोप-पत्र को प्रदर्शक-6 के रूप में साबित किया है।

पी0डब्लु0-10 द्वारा अपने बयान में अभियुक्त सैयद मुबारिक द्वारा जनपद काशमीर को बताये पते की जांच हेतु जनपद काशमीर जाने का कथन किया है तथा यह भी कथन किया है कि उसका काशमी का पता गलत पाया गया था।

पी0डब्लु0-1ए उपनिरीक्षक तेजवीर सिंह द्वारा भी जनपद काशमीर के पते की जांच करने का कथन किया है तथा यह पाया है कि जनपद काश्मीर का पता उसके द्वारा गलत बताया गया है।

अभियोजन पक्ष द्वारा अन्य कोई साक्ष्य पेश न करने पर अभियोजन साक्ष्य समाप्त किया गया तथा अभियुक्त का बयान धारा 313 दं.प्र.सं. अंकित किया गया। अभियुक्त द्वारा धारा 313 दं.प्र.सं. के बयानों में साक्षियों द्वारा गलत बयान देने की बात कही। सफाई साक्ष्य देने से इन्कार किया।

बहस सुनी गई।

अभियुक्त पक्ष की ओर से संक्षिप्तः यह तर्क प्रस्तुत किये गये कि जहां पत्रावली पर आये साक्ष्यों के आधार पर अभियोजन पक्ष अभियुक्त की मौके पर उपस्थिति व उसके द्वारा किये गये कृत्य तथा उसकी गिरफ्तारी के तथ्यों का युक्ति युक्त संदेह से परे साबित करने में असफल हुआ है वहीं दूसरी ओर आरोपित अपराध अन्तर्गत धारा 124(क) भा.दं.सं. के सम्बंध में धारा 196 दं.प्र.सं. में आवश्यक अनुमति इस मामले में नहीं है तथा पत्रावली पर आये साक्ष्यों से जहां एक ओर धारा 205 व 419 भा.दं.सं. से सम्बन्धित अपराध भी अभियुक्त पर गठित नहीं होता हैं वहीं धारा 205 भा.दं.सं. हेतु निश्चित आवश्यकताएं अन्तर्गत धारा 195(1), (ख), (1) का अनुपालन इस मामले में नहीं किया गया अतः अभियुक्त पर आरोपित अपराध युक्ति युक्त संदेह से परे साबित नहीं है। अतः उसे दोष मुक्त किया जाये।

अभियोजन पक्ष द्वारा संक्षिप्तः यह तर्क प्रस्तुत किये गये कि उनके द्वाा 11 साक्षी इस मामले में परीक्षित कराये गये हैं जिनके साक्ष्यों के आधार पर अभियुक्त पर आरोपित अपराध युक्ति युक्त संदेह से परे साबित है। अभियुक्त का दोष सिद्ध किया जाये।

मैंने अभियुक्त पक्ष के विद्वान अधिवक्ता तथा अभियोजन पक्ष की ओर से अपर जिला शासकीय अधिवक्ता(फो0) को इस मामले के गुण दोषों पर प्रस्तुत किये गये तर्कों को पूर्ण रूपेण सुन लिया है तथा पत्रावली पर आये साक्ष्यों का सम्यक् परिशीलन कर लिया है।

पत्रावली के सूक्ष्म परिशीलन से यह स्पष्ट होता है कि संक्षिप्तः अभियोजन मामला यह है कि दिनांक 20.8.06 को अभियुक्त को भारतीय सेना ने भारतीय सरकार के विरूद्ध घृणात्मक उन्माद वाले वक्तव्य देते हुए गिरफ्तार किया गया था तथा गिरफ्तारी के पश्चात् उसके द्वारा बताया गया पता गलत पाया गया। इस प्रकार अभियुक्त पर धारा 124(क) भा.दं.सं. तथा धारा 205/419 ीाा.दं.सं. में पृथक-पृथक आरोप-पत्र प्रस्तुत किये गये।

मैंने सर्वप्रथम धारा 124(क) भा.दं.सं. के अपराध पर विचार किया।

धारा 124(क) भा.दं.सं. के अनुसार अभियोजन को निम्न तथ्यों को साबित करना आवश्यक हैः-

यह कि किसी व्यक्ति द्वारा,
1. भारत सरकार के प्रति घृणा या अपमान उत्पन्न किया हो या उत्पन्न करने का प्रयत्न किया हो या अपमान उत्पन्न किया हो या उत्पन्न करने का प्रयत्न किया हो या अप्रदीप्त करने का प्रयत्न किया हो।

2. ऐसे कार्य या प्रयास को
(क) बोले या लिखित शब्दों द्वारा या,
(ख) संकेतों द्वारा या,
(ग) दृश्य रूपेण द्वारा किया गया हो।

मैंने इस बिन्दु पर पत्रावली पर आये साक्ष्यों का सम्यक् रूपेण परिशीलन किया।

अभियुक्त द्वारा इस स्तर पर यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया है कि पुलिस कर्मियों की मौके पर उपस्थिति के सम्बंध में अभियोजन पक्ष युक्ति युक्त सर्वोत्तम साक्ष्य न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने में असमर्थ रहा है जिससे कि उनकी मौके पर उपस्थिति का तथ्य साबित नहीं होता है। मैंने इस बिन्दु पर विचार किया।

पी0डब्लु0-3, पी0डब्लु0-5 के रूप में परीक्षित निरीक्षक एल0आई0यू0 द्वारा यह कथन किया गया है कि दि0 20.8.06 को ज बवह गोपनीय सूचना एकत्र करने हेतु सी0बी0गंज क्षेत्र में घूम रहे थे तो मुखबिर की गोपनीय सूचना के आधार पर वे ग्राम सनैया रानी पहंुचे तो उन्हें बाबू खां के घर के सामने बाहर खुली जगह पर 15-20 आदमी जमा मिले जिसमें कि एक आदमी यह कह रहा था कि मैं जम्मू काशमीर का रहने वाला हूं। मेरे भाई, बहन, बच्चे, पत्नी व गांव के लगभग 250 व्यक्तियों को आतंकवादी बताकर भारतीय सेना ने भारतीय सरकार के इशारे पर मौत के घाट उतार दिया है। मैं किसी तरह जान बचाकर भाग आया हूं। मेरे बीवी-बच्चे सब उसमें शहीद हो गये हैं। पी0डब्लु0-3 व पी0डब्लु0-5 का यह भी कहना है कि यह सुनकर वह थाना सी0बी0 गंज आये तथा थानाध्यक्ष व अन्य पुलिस कर्मियों को बताकर उनको साथ ले कर मौके पर पुनः पहुंचे और तब तक वह व्यक्ति भाषण दे रहा था और ऐसे ही उसे गिरफ्तार किया गया।

चिक एफ0आई0आर प्रदर्शक-2 व कायमी जी0डी0 प्रदर्शक-3 जिसे कि पी0डब्लु-2 उपनिरीक्षक ओमकार सिंह जो कि तत्कालीन समय में हेड मोहर्रिर के द्वारा अपने लेख व हस्ताक्ष्र में होना साबित किया है, से यह स्पष्ट होता है कि लगभग 6ः30 बजे सायंकाल यह घटना होना कही गयी है तथा उसी दिन 9ः30 बजे यह प्रथम सूचना रिपोर्ट अंकित करायी गई तथा घटना स्थल से थाने की दूरी लगभग 2 किमी0 थी। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि एल0आई0यू0 के दो पुलिसकर्मी पी0डब्लु0-3 व पी0डब्लु-5 द्वारा सर्वप्रथम अभियुक्त को 15-20 लोगों की भीड़ से ऐसी बातें करते सुना गया तथा फिर वह वहां से लगभग 2 किमी0 दूर थाने पर आये वहां पर थाने के पुलिस कर्मियों को सूचना दी और वह तब पुनः पुलिस कर्मियों के साथ मौके पर आये और उस व्यक्ति को वही बातें करते सुना तब उसको गिरफ्तार किया गया। निश्चित रूप से इन सब कायवाहियों में कम से कम एक-एक घंटे का समय अवश्य लगा होगा। पत्रावली पर आये साक्ष्यों से यह स्पष्ट होता है कि कितने बजे पी0डब्लु0-3 व पी0डब्लु0-5 एल0आई0यू0 के कर्मियों द्वारा अभियुक्त को यह बातें करते हुए सर्वप्रथम सुना गया था, वह समय उनके द्वारा साक्ष्य में कथित नहीं किया गया। अतः ऐसी स्थिति में लगभग एक घंटे तक 15-20 व्यक्तियों को लगातार वही बातें करते रहना व उसी स्थान पर एकत्र रहना तथा पुलिस कर्मियों के समक्ष भी इन्हीं बातों को इतने लम्बे समय तक किये जाते रहना स्वाभाविक प्रतीत नहीं होता है। पत्रावली से यह भी स्पष्ट होता है कि थाना सी0बी0 गंज की कोई सम्बन्धित जी0डी0 जिसके द्वारा पुलिस कर्मी थाना सी0बी0 गंज थाने से निकले हो, न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर साबि त नहीं की गई जब कि निश्चित रूप् से पुलिस कर्मी जब थाने से किसी कार्य हेतु निकलते हैं तब थाने में रखी जी0डी0 में इसका इन्द्राज निश्चायक रूप से किया जाता है तथा सम्बन्धित जी0डी0 ही एक मात्र साक्ष्य है जो यह दर्शित करती है कि प्रश्नगत समय पर पुलिस कर्मी किस उद्देश्य हेतु व कहां व कितने बजे व किस सूचना पर थाने से चले थे। अतः इस सम्बंध में यह एक सर्वोत्तम साक्ष्य है परन्तु अभियोजन पक्ष द्वारा सम्बन्धित रवानगी जी0डी0 को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर साबित नहीं किया है न ही इसे साबित न करने का क्या कारण था यह ही स्पष्ट किया। अतः ऐसी स्थिति में इस निष्कर्ष पर हूं कि अभियोजन पक्ष इस बिन्दु पर सर्वोत्तम साक्ष्य न्यायालय के समक्ष साबि त करन में पूर्णतः असफल रहा है परन्तु इतने मात्र से सम्पूर्ण अभियोजन कथानक को संदिग्ध नहीं माना जा सकता, बल्कि ऐसी स्थिति में न्यायालय पर यह दायित्व अधिरोपित होता है कि वह पत्रावली पर आये समस्त साक्ष्यों की सूक्ष्मता से विवेचना करे और तत्पश्चात् ही किसी ऐसे निष्कर्ष पर पहुंचे, जिस हेतु मैं अग्रसरित हूं।

पी0डब्लु0-1 व पी0डब्लु0-3 व पी0डब्लु0-5 जो कि मौके के साक्षी हैं, के साक्ष्यों से यह स्पष्ट होता है कि मौके पर ही अभियुक्त को गिरफ्तार किया गया था तथा उसकी गिरफ्तारी व बरामदगी की फर्द, जिसे कि प्रदर्शक-1 के रूप में साबित किया गया था, निर्मित की गई थी। इस साक्षियों के साक्ष्य व प्रदर्शक-1 को देखने से यह स्पष्ट होता है कि मौके पर उपस्थित व्यक्तियों द्वारा गवाही देने से इन्कार किया गया था परन्तु पत्रावली से यह स्पष्ट होता है कि अभियोजन पक्ष द्वारा स्वतंत्र साक्षियों के रूप में पी0डब्लु0-6 याकूब अली, पी0डब्लु0-7 रसूल खां व पी0डब्लु0-8 बाबू खां तीन व्यक्तियों को न्यायालय के समक्ष परीक्षित कराया है। यह तीनों ही साक्षी पक्षद्रोही घोषित हुए हैं जिन्होंने अभियुक्त द्वारा कोई घृणात्मक वक्तव्य देने से इन्कार किया है तथा उनका यह कहना है, कि अभियुक्त को पुलिसकर्मियों द्वारा मस्जिद से पकड़ा गया था जहां कि वह मौजूद थे। इन साक्ष्यों के साक्ष्य से व नक्शा नजरी प्रदर्शक-4 जिसे कि पी0डब्लु0-4 विवेचक द्वारा साबित किया गया है, से यह स्पष्ट होता है कि मोटा बाबू खां के मकान के सामने अभियुक्त को घृणात्मक वक्तव्य देते हुए पुलिए कर्मियों द्वारा पकड़ा गया था अतः इस सम्बन्ध में सर्वोत्तम साक्षी मोटा बाबू खां थे परन्तु उन्हें नामि या परीक्षित क्यों नहीं किया गय इस सम्बन्ध में कोई कारण अभियोजन पक्ष स्पष्ट नहीं कर सका है। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि केवल पी0डब्लु0-1, पी0डब्लु0-3, पी0डब्लु0-5 जो कि पुलिस कर्मी व एल0आई0यू0 के कर्मी हैं ही, इस सम्बंध में साक्षी है। पत्रावली से यह भी स्पष्ट होता है कि क्या अभियुक्त किसी राष्ट्र के विरूद्ध गतिविधियों में शामिल रहा था अथवा इस प्रकार की गतिविधियों से सम्बन्धित किसी गिरोह का सदस्य था इस सम्बंध में कोई भी साक्ष्य अभियोजन पक्ष द्वारा न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर साबित नहीं किया गया। क्या अभियुक्त के संबंध में पूर्व में इस प्रकार की गतिविधियों में शामिल होने की कोई सम्भावना थी कि इस प्रकार की गतिविधियों में शामिल होने में वह कभी पाया गया था। अतः ऐसा कोई साक्ष्य अभियोजन पक्ष द्वारा न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया। पत्रावली पर आये साक्ष्यों से यह भी स्प्ष्ट होता है कि अभियुक्त के वक्तव्य के संबंध में क्या कोई सत्यता थी इस संबंध में भी कोई जांच नहीं की गई थी तथा किस घटना के संबंध में वक्तव्य अभियुक्त दे रहा था उसमें क्या सत्यता थी। इस संबंध में कोई भी जांच नहीं की गई। पत्रावली पर आये साक्ष्यों से यह भी स्पष्ट होता है कि अभियुक्त के वक्तव्य से कौन व्यक्ति प्रभावित थे तथा किन व्यक्तियों के सामने वह ऐसे वक्तव्य दे रहा था तथा क्या ऐसे व्यक्ति उससे प्रभावित हुए थे। इस संबंध में कोई भी साक्ष्य पत्रावली पर नहीं है और न ही ऐसे व्यक्तियों को नामित ही किया गया है जब कि 15-20 लोगों जिन्हें कहा गया है एकत्र होना कहा गया था निश्चित रूप से उस गांव के निवासी थे और पुलिसकर्मी उन्हें चिन्हित कर सकते थे परन्तु इन 15-20 व्यक्तियों को न तो नामित किया और न ही चिन्हित किया गया। अभियोजन पक्ष द्वारा जिन साक्षियों को इस संबंध में नामित व चिन्हित किया गया वह पी0डब्लु0-6, पी0डब्लु0-7 व पी0डब्लु0-8 के रूप में न्यायालय के समक्ष परीक्षित हुए हैं जिनके द्वारा अभियोजन कथानक का कोई समर्थन नहीं किया गया है। अतः ऐसी स्थिति में इस राय का हूं कि अभियुक्त द्वारा प्रश्नगत समय व दिनांक पर व प्रश्नगत स्थान पर ऐसा कोई वक्तव्य दिया गया अथवा अभियुक्त ऐसे वक्तव्य देने वाला कोई राष्ट्र विरोधी गिरोह का सदस्य था। इस संबंध में अपने कथनों की विश्वसनीयता अभियोजन पक्ष युक्ति युक्त संदेह से परे साबित करने में असफल रहा है।

अभियुक्त पक्ष द्वारा यह भी तर्क प्रस्तुत किया गया है िकइस मामले में धारा 124(क) भा.दं.सं. का संज्ञान लेने हुतु आवश्यक था कि धारा 196(क) दं.प्र.सं. के अन्तर्गत केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी ली जाये और तत्पश्चात् ही न्यायालय ऐसे मामले पर संज्ञान ले सकता है जब कि प्रस्तुत मामले में कोई पूर्व अनुमति नहीं ली गई और न न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की गई। मैंने इस संबंध में विचार किया धारा 196(क) दं.प्र.सं. के अनुसारः-

(1) कोई न्यायालय -

(क) भारतीय दण्ड संहिता (1960 का 85) के अध्याय 6 के अधीन या धारा 153 (क), धारा 295 (क) या धारा 505 की उपधारा (1) के अधीन दण्डनीय किसी अपराध का अथवा
(ख) ऐसा अपराध करने के लिए आपराधिक षडयन्त्र का अथवा
(ग) भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 108(क) में यथा वर्णित किसी दुष्प्रेरण का, संज्ञान केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी से ही किया जायेगा, अन्यथा नहीं।

इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि भारतीय दण्ड संहिता के अध्याय 6 में शामिल अपराधी के संबंध में न्यायालय संज्ञान उसी स्थिति में ले सकता है जब कि केन्द्रीय सरकार व राज्य सरकार की मंजूरी प्राप्त हो। पत्रावली से यह स्पष्ट होता है कि अभियोजन पक्ष द्वारा ऐसी कोई पूर्व मंजूरी केन्द्रीय सरकार अथवा राज्य सरकार से प्राप्त की गई, इस सम्बंध में उनके द्वारा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया। इस संबंध में परीक्षित विवेचक पी0डब्लु0-4 जिनके द्वारा आरोप-पत्र दाखिल किया गया व आरोप-पत्र को प्रदर्शक-5 के रूप में साबित किया है, द्वारा कोई भी पूर्व मंजूरी इस संबंध में प्राप्त की गई ऐसा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है न ही अभियोजन पक्ष द्वारा ऐसी कोई पूर्व मंजूरी का प्रमाण न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया है।

अतः उपरोक्त स्थिति में मैं इस निष्कर्ष पर हूं कि धारा 124 (क) भा.द.सं. से संबंधित अपराध के संज्ञान के लिए यह आवश्यक है कि केन्द्रीय सरकार व राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी ली जाये और इसके बिना कोई भी न्यायालय इस अपराध में संज्ञान नहीं ले सकता। अतः ऐसी स्थिति में निश्चित रूप से संबंधित विवेचक द्वारा भारी भूल की गई है। उनके द्वारा ऐसी मंजूरी लेने का कोई प्रयासी भी किया गया ऐसा कोई साक्ष्य भी उनके द्वारा प्रस्तुत नहीं किया गया। अतः निश्चित रूप से मैं इस राय का हूं कि सम्बन्धित विवेचक द्वारा इस मामले में घोर अनियमितता बरती गई तथा धारा 196(1) दं.प्र.सं. के प्राविधानों के अनुसार धारा 124(क) भा.दं.सं. से संबंधित अपराध में न्यायालय द्वारा संज्ञान नहीं लिया जा सकता था। अतः उपरोक्त स्थिति में मैं इस निष्कर्ष पर हूं कि धारा 124(क) भा.दं.सं. का अपराध अभियुक्त पर, जहां एक ओर तथ्यों के संबंध में अभियोजन पक्ष युक्ति युक्त संदेह से परे साबित करने में असफल रहा है वहीं दूसरी ओर धारा 196(1) दं.प्र.सं. के अनुसार केन्द्रीय सरकार अथवा राज्य सरकार से पूर्व मंजूरी न लिये जान पर अभियुक्त के विरूद्ध धारा 124(क) भा.द.सं. का अपराध चलने योग्य नहीं था। अतः अभियुक्त सैयद मुबारिक धारा 124(क) के अपराध से तद्नुसार दोष मुक्त होने का अधिकारी है।

अब मैंने धारा 205 व 419 भा.द.सं. के अपराध के संबंध में विचार किया।

धारा 205 भा.द.सं. के अनुसार-
जो कोई किसी दूसरे का मिथ्या प्रतिरूपण करेगा और ऐसे धरे हुए रूप में किसी वाद या आपराधिक अभियोजन में कोई स्वीकृति या कथन करेगा या दावे की संस्वीकृति करेगा, या कोई आदेशिक निकलवायेगा या जमानतदार या प्रतिभू बनेगा, या कोई भी अन्य कार्य करेगा, वह दोनों में किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष की हो सकेगी, या जुर्माने से या दोनों से दण्डित किया जायेगा।

अभियुक्त द्वारा इस स्तर पर यह तर्क प्रस्तुत किया गया है कि धारा 195 (क) बी, (1) दं.प्र.सं. के अन्तर्गत धारा 205 भा.दं.सं. से संबंधित मामले में संज्ञान ऐसे न्यायाल को या उस न्यायालय के ऐसे अधिकारी द्वारा जिस न्यायालय ने लिखित रूप से इस हेतु अधिकृत किया है, या किसी अन्य न्यायालय के, जिसके वह न्यायालय अधीनस्थ हों, लिखित परिवाद पर ही करेगा, अन्यथा नहीं। अभियुक्त का यह तर्क है कि इस मामले में परिवादी न्यायालय नहीं है। अतः धारा 205 दं.प्र.ंसं. के अन्तर्गत यह मामला चलने योग्य नहीं है।

मैंने उक्त बिन्दु पर विचार किया तथा पत्रावली का सम्यक परिशीलन किया।

धारा 195 दं.प्र.सं. (1), (बी), (1) के जो भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) 196 तक (दोनों सहित), 199, 200, 205 से 211 तक (दोनों सहित) और 228 के अधीन दण्डनीय हो, जब ऐसे अपराध के लिए अभिकथित हो कि वह किसी न्यायालय में की कार्यवाही में या उसके संबंध में किया गया है।

इस प्रकार उक्त प्राविधानों से यह स्पष्ट होता है कि जब धारा 205 भा.दं.सं. से संबंधित अपराध किसी न्यायालय की र्कावाही में या उसके संबंध में किया जाये तभी ऐसी स्थिति में न्यायालय अथवा न्यायालय के अधिकारी द्वारा लिखित रूप में परिवाद किया जाना आवश्यक होता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि धारा 205 भा.दं.सं. का अपराध न्यायालय के किसी कार्यवाही में अथवा उसके संबंध में किया गया है, के अलावा भी सम्पादित किया जा सकता है तथा ऐसे अपराध हेतु धारा 195 दं.प्र.सं. की विधिक आवश्यकता लागू नहीं होती।

मैंने उपरोक्त स्थिति में पत्रावली पर आये साक्ष्यों का सम्यक परिशीलन किया। पत्रावली पर आये साक्ष्यों से यह स्पष्ट है कि अभियुक्त के गिरफ्तार हो जाने के पश्चात् पुलिस कर्मी जो कि लोक सेवक था, के समक्ष अभियुक्त द्वारा अपना गलत पता बताया गया यह अभियोग अथ्भयुक्त पर है पुलिसकर्मी जो लोक सेवक है उनके समक्ष गिरफ्तारी के पश्चात की गई इस कार्यवाही में अभियुक्त द्वारा किये गये कथन न्यायिक कार्यवाही में किये गये कथन नहीं माने जायेंगे। अतः धारा 195 (1), (बी), (1) दं.प्र.सं. की विधिक आवश्यकता इस मामले में नहीं थी। अतः ऐसी स्थिति में मैं इस राय का हूं कि अभियुक्त का यह तर्क विधितः स्वीकार नहीं किया जा सकता।

धारा 205 भा.दं.सं. के सम्यक् परिशीलन से यह स्पष्ट होता है कि इस अपराध को गठित करने के लिए सर्वप्रथम यह आवश्यक तत्व है कि कोई व्यक्ति किसी दूसरे का मिथ्या प्रतिरूपण करे और ऐसे धरे हुए रूप में ऐसा अपराध कारित करे। मिथ्या प्रतिरूपण का अर्थ क्या है, इस संबंध में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 416 से परिभाषित करता है।
धारा 416 भा.दं.सं. के अनसार-

कोई व्यक्ति प्रतिरूपण द्वारा छल करता है, यह तब कहा जाता है ज बवह यह उपदेश करके कि यह कोई अन्य व्यक्ति है, या एक व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति के रूप में जानते हुए प्रस्थापित करके, या यह व्ययदिष्ट करके कि वह या कोई अन्य व्यक्ति, कोई ऐसा व्यक्ति है, जो वस्तुतः उससे या अन्य व्यक्ति से भिन्न है, छल करता है।

स्पष्टीकरण - यह अपराध हो जाता है चाहे वह व्यक्ति जिसका प्रतिरूपण किया गया है वास्तविक व्यक्ति हो या काल्पनिक।

इस प्रकार धारा 416 भा.दं.सं. से यह स्पष्ट होता है कि मिथ्या प्रतिरूपण किये जाने हेतु दो व्यक्तियों की आवश्यकता है प्रथम वह व्यक्ति जिसके द्वारा मिथ्या प्रतिरूपण किया गया हो द्वितीय वह व्यक्ति जिसके नाम का पद व हैसियत का मिथ्या प्रतिरूपण अभियुक्त द्वारा किया गया हो। उपरोक्त स्थिति को प्रस्तुत मामले के परिप्रेक्ष्य में देखने पर यह स्पष्ट होता है कि अभियुक्त द्वारा अ पने को कोई अन्य व्यक्ति नहीं बताया गया, बल्कि उसके द्वारा मात्र स्वयं का पता जम्मू काशमीर का बताया गया। यह अभियोग अभियुक्त पर है। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि अभियुक्त द्वारा मात्र अपने का जम्मू काश्मीर का निवासी होना बताया था। वहां के किसी अन्य व्यक्ति के नाम के रूप में वहैसियत के रूप में अपने को प्रदर्शित नहीं किया। इस प्रकार मात्र अभियुक्त के विरूद्ध यह आरोप है कि उसके द्वारा लोक सेवक को गलत पता बताया गया तथा पत्रावली पर आये साक्ष्यों से यह भी स्पष्ट है कि अभियुक्त कोई अन्य व्यक्ति था इस संबंध में न तो कोई साक्ष्य है और न ही विवेचक इस तथ्य से प्रभावित रहे हो। न ही अभियुक्त द्वारा ऐसे किसी अन्य व्यक्ति के पद व हैसियत धारण कर कोई लाभ लेने की ही कोई चेष्टा की है। अतः ऐसी स्थिति में मैं इस राय का हूं कि अभियुक्त द्वारा किसी अन्य व्यक्ति का मिथ्या प्रतिरूपण कर उसकी पद व हैसियत व नाम धारण करने की कोई कोशिश नहीं की थी। अतः प्रस्तुत मामले मं यह नहीं माना जा सकता कि अभियुक्त द्वारा किसी अन्य व्यक्ति का नाम, पद अथवा हैसियत का मिथ्या प्रतिरूपण किया हो।

धारा 205 भा.दं.सं. के परिश्ज्ञीलन से यह स्पष्ट होता है कि ऐसे मिथ्या प्रतिरूप्ण या धरे हुए रूप में किसी वाद या आपराधिक अभियोजन ने भी स्वीकृति या कथन अभियुक्त करे अथवा दावे की संस्वीकृति करे अथवा कोई आदेशिका निकलवाये या जमानतदार या प्रतिभू बने व कोई अन्य कार्य करे उसी स्थिति में धारा 205 भा.दं.सं. का अपराध गठित होगा। पत्रावली पर अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों से यह स्पष्ट है कि अभियुक्त द्वारा ऐसा कोई कार्य नहीं किया गया, बल्कि केवल उसके द्वारा लोक सेवक के समक्ष गिरफ्तारी के समय अपना पता गलत बताया, यह कथन किया गया। उक्त समय न तो कोई वाद लम्बित था और न ही कोई आपराधिक अभियोजन चल रहा था।

पत्रावली पर आये साक्ष्यों से यह भी स्पष्ट होता है कि अभियोजन पक्ष का मात्र यह कथन है कि अभियुक्त द्वारा गिरफ्तारी के पश्चात ही अपना पता गलत बताया है। इस संबंध में क्या उसके बयान मजिस्ट्रेट के समक्ष रिकार्ड किये गये। इस संबन्ध में कोई भी साक्ष्य पत्रावली पर नहीं है तथा क्या जांच उसके पते को जानने हेतु की गई इस संबंध में परीक्षित साक्षी पी0डब्लु0-10 व पी0डब्लु0-1ए के साक्ष्यों से यह स्पष्ट होता है कि दिनांक 26.6.07 को कुछ काशमीर की पते की सत्यता को जानने के लिए गये थे। किसके आदेश से व किस विधिक प्रक्रिया के अन्तर्गत वह ऐसी जांच करने गये थे तथा इस संबंध में कोई साक्ष्य पत्रावली पर नहीं है। जांच के दौरान उनके द्वारा किन व्यक्तियों से पूछताछ की गई इस संबंध में कोई भी साक्ष्य अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत नहीं किया गया। पी0डब्लु0-10 का मात्र यह कहना है कि वह पुलिस अधीक्षक महोदय पुंछ कार्यालय में गया, वहां इस संबंध में जानकारी की। अपने साक्ष्य में पी0डब्लु0-10 प्रभारी महोदय से लिखित प्रमाण-पत्र भी इस संबंध में प्राप्त करने का कथन करते हैं कि ग्राम चन्दनपुर व तहसील रानीबाग, जिला पुंछ के नाम का कोई स्थान नहीं है परन्तु उक्त प्रमाण-पत्र कहां है, उसे क्यों न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया। इस संबंध में अभियोजन पक्ष मौन है तथा ऐसा कोई लिखित प्रमाण-पत्र न्यायालय के समक्ष अभियोजन पक्ष द्वारा न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया। पी0डब्लु0-1ए के रूप में परीक्षित उपनिरीक्षक तेजवीर सिंह द्वारा अभियुक्त सैयद मुबारिग को जिला पुंछ काशमीर के पते की जांच करने हेतु जाने का कथन भी किया है तथा इस संबंध में उन्हें एक प्रमाण-पत्र भी बनाकर जिला पुंछ की पुलिस ने दिया था कि बताये गये पते का कोई स्थान वहां नहीं है। यह कथन किया है परन्तु इनके द्वारा ऐसा कोई प्रमाण-पत्र न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया है तथा वह प्रमाण-पत्र कहां है व प्रस्तुत न करने का कारण क्या है इस संबंध में कोई भी साक्ष्य उनके द्वारा प्रस्तुत नहीं किया गया है तथा किसके आदेश से किस प्रकार वह जिला पंुछ काशमीर गये थे इस संबंध में कोई भी दस्तावेजीय साक्ष्य उनके द्वारा प्रस्तुत नहीं किया गया। अतः ऐसी स्थिति में मैं इस राय का हूं कि जिला पुंछ का पता, जिसके संबंध में अभियोजजन का यह कथन है कि उसे अभियुक्त ने बताया था कि किस प्रकार जांच में फर्जी पाया गया इस तथ्य के संबंध में सर्वोत्तम साक्ष्य न्यायालय के समक्ष अभियोजन जानबूझ कर प्रस्तुत करने में विफल रहा है। इस प्रकार जहां एक ओर अभियुक्त द्वारा पुलिस कार्यवाही के दौरान जिला पुंछ का पता बताया गया यह कथन मात्र पुलिस के समक्ष किया गया कथन है, जो कि विधि अनुसार साक्ष्य में ग्राह्य नहीं है, वहीं दूसरी ओर जिला पुंछ के पते की सत्यता जानने के लिए वास्तविक प्रयास किया गया। इस संबंध में कोई भी सर्वोत्तम साक्ष्य पत्रावली पर दाखिल नहीं है।

पत्रावली से यह भी स्पष्ट होता है कि साक्ष्यों ने यह स्वीकार किया है कि जमानत प्रपत्र पर अपना पता जनपद सीतापुर का बताया था तथा उक्त पता सत्य पाया गया। अतः उक्त स्थिति में मैं इस राय का हूं कि जहां अभियोजन पक्ष अभियुक्त के विरूद्ध गलत पता बताये जाने के तथ्य को व उस संबंध में की गई जांच को न्यायालय के समक्ष युक्ति युक्त संदेह से परे साबित करने में पूर्णतः असफल रहा है वहीं दूसरी ओर जमानत के प्रथम स्तर पर लिखित रूप में जो पता अभियुक्त द्वारा बताया गया वह सत्य पाया गया था। पत्रावली से यह भी स्पष्ट है कि अभियुक्त के विरूद्ध धारा 419 का आरोप भी लगाया गया है तथा ऊपर की गई विवेचना से यह स्पष्ट होता है कि अभियुक्त द्वारा किसी अन्य व्यक्ति के नाम, पद अथवा हैसियत का मिथ्या प्रतिरूपण किया गय यह तथ्य साबित नहीं है तथा धाा 419 भा.दं.सं. मिथ्या प्रतिरूपण द्वारा छल किये जाने के अपराध को दण्डनीय करती है। अतः ऐसी स्थिति में अभियुक्त द्वारा कोई छल किया गया यह भी अभियोजन पक्ष द्वारा साबित किया जाना आवश्यक है। छल को धारा 415 भा.दं.सं. में परिभाषित किया गया है। जिसके अनुसार -

छल - जो कोई किसी व्यक्ति से प्रवंचना कर उस व्यक्ति को, जिसे इस प्रकार प्रवंचित किया गया है कपटपूर्ण बेईमानी से उत्प्रेरित करता है िकवह कोई सम्पत्ति किसी व्यक्ति को परिदत्त कर दे, या यह सम्मति दे दे कि कोई व्यक्ति किसी सम्पत्ति को रखे या साशय उसे व्यक्ति को जिसे इस प्रका प्रवंचित किया गया है, उत्पे्ररित करता है िकवह ऐसा कोई कार्य करे, या करने का लोप करे जिस वह उसे इस प्रकार प्रवंचित न किया गया होता तो, न करता या करने का लोप न करता और जिस कार्य का लोप उस व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक ख्याति संबंधी या सामपत्तिक नुकसान या अपहानि कारत होती है, या कारित होनी संभाव्य है, वह ‘‘छल’’ करता है, यह कहा जाता है।

स्पष्टीकरण - तथ्यों का बेईमानी से छिपाना इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत प्रवंचना है।

इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि छल के अपराध में साबित किया जाना आवश्यक है कि कपटपूर्वक बेईमानी से अभियुक्त ने किसी व्यक्ति को उत्प्रेरित किया हो कि वह किसी व्यक्ति की सम्पत्ति उसे प्रदत्त कर दें अथवा यह सहमति दे दे कि कोई व्यकित किसी सम्पत्ति को रखे। प्रस्तुत मामले के परिश्ज्ञलीन से उपरोक्त अपराध को देखने से यह स्पष्ट होता है कि प्रस्तुत मामले में ऐसा कोई तथ्य अभियोजन पक्ष द्वारा नहीं किया गया है कि अभियुक्त द्वारा किसी व्यक्ति अथवा अन्य व्यक्ति की सम्पत्ति को इस प्रकार प्राप्त करने या अपने कब्जे में बनाये रखने का प्रयास को हो।

इस प्रकार उपरोक्त विवेचना से यह स्पष्ट होता है कि जहां एक ओर धारा 205 भा.दं.सं. का आरोप भाी अभियोजन पक्ष युक्ति युक्त संदेह से परे अभियुक्त पर साबित करने में पूर्णतः असफल रहा है वहीं अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत किये गये साक्ष्यों से अभियुक्त पर धारा 419 भा.दं.सं. के अपराध का आरोप भी गठित नहीं होता है।

इस प्रकार उपरोक्त विवेचना के आधार पर मैं इस निष्कर्ष पर हूं कि अभियुक्त सैयद मुबारिक धारा 124 (क), 205 व 419 भा.दं.सं. के अपराध से दोषमुक्त होने का अधिकारी है।
आदेश

अभियुक्त सैयद मुबारिक को धारा 124 (क) भा.दं.सं. व धारा 205/419 भा.दं.सं. के अपराध से दोषमुक्त किया जाता है।

अभियुक्त सैयद मुबारिक जमानत पर है। न्यायालय में उपस्थित है। उसके बन्ध-पत्र निरस्त। प्रतिभू उन्मोचित किये जाते हैं।



दिनांकः 02.12.09 (विनय खरे)
अपर सत्र न्यायाधीश (त्वरित न्यायालय)
कक्ष सं0-3, बरेली


निर्णय व आदेश आज मेरे द्वारा हस्ताक्षरित, दिनांकित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।


दिनांकः 02.12.09 (विनय खरे)
अपर सत्र न्यायाधीश (त्वरित न्यायालय)
कक्ष सं0-3, बरेली





0 comments:

Post a Comment