Site Network: Home | shuaibsamar | Gecko and Fly | About

1964 की होली के बाद


सन् 1964 की बात है। उस समय मैं इण्टरमीडिएट के पहले वर्ष का छात्र था, होली की छुट्टियां खत्म हुईं। सब स्कूल आये, मेरे एक सहपाठी बी0एस0 चैहान जो इस समय लखीमपुर खीरी में वकालत करते हैं, मुझसे मिलते ही बोले, ‘‘हरनाम सिंह तुमसे माफी मांगना चाहते हैं।’’ उत्तर में मैंने कहा, कहां हैं हरनाम सिंह? उनको माफी मांगने की जरूरत नहीं है, चलों मैं ही उनसे माफी मांगे लेता हूं क्योंकि उन्होंने मेरे साथ जो कुछ किया था वह प्रतिक्रिया स्वरूप था और वह प्रतिक्रिया मेरे भाषण से उनका दिल दुखने के कारण हुई थी, इसलिए उनका दिल दुखाने का दोषी होने के कारण मेरा माफी मांगना जरूरी था। चैहान ने कहा, शायद अभी वह कमरे से नहीं आये हैं इसलिए मैंने चैहान से उनके कमरे पर चलने को कहा और कमरे की ओर चलने पर सामने से हरनाम सिंह आते हुए दिख गए इसलिए हम स्कूल के बरामदे में रूके, जहां पहुंचते ही हरनाम सिंह ने मुझसे माफी मांगी और मुझे माफी मांगने का मौका नहीं दिया।
माफी इसलिए मांगी गई थी कि होली की छुट्टियों के पहले हरनाम सिंह ने सम्प्रदाय सूचक गाली देकर मुझपर हाथ उठाया था। हाथ, कक्षा के कमरे में उस वक्त उठाया था जब लोगों के कहने पर बेमन से मैंने नाश्ते में मूंगफली बांटना शुरू किया था, हरनाम सिंह के हाथ उठाते ही मेरे सभी सहपाठी उनपर टूट पड़े और मुझे बचाया। यह घटना एकाएक ही नहीं घटित हुई थी बल्कि सहपाठियों के बहुत कहने पर मूंगफली बंटवाने के लिए मैंने किसी ऐसे व्यक्ति का चयन किया जिसे हिन्दू और मुसलमान दोनों ही अछूत समझते थे, लेकिन मेरी बात नहीं मानी गई और मूंगफली मुझसे ही बंटवाने पर जोर दिया गया।
कारण, सम्प्रदाय सूचक गाली के साथ मारने के लिए हाथ पकड़ने का एक ही था कि इस घटना से पूर्व महोली, जिला सीतापुर में सर्वोदय की एक जनसभा थी जिसमें सम्मिलित होने के लिए हम सब को छुट्टी दे दी गई थी। अपनी आदत के मुताबिक मैं सभा में सबसे आगे बैठा था। सारे वक्ताओं का भाषण मैंने ध्यानपूर्वक सुना था और जिस समय अन्तिम वक्ता अपना वक्तव्य समाप्त करने को थे प्रिंसिपल साहब को मैंने देखा कि उनकी नजरें किसी को तलाश रही थीं और उनकी नजरें जिसे तलाश कर रही थीं उसे न पाकर बैठते-बैठते मुझसे बोल पड़े, ‘‘क्या कुछ बोलोगे?’’ मैं उनकी इच्छा का आदर करते हुए बोल पड़ा, ‘‘जैसा आपका आदेश।’’ इस पर उन्होंने उस आखिरी वक्ता के बोलने के बाद ही मुझे बोलने का आदेश दिया और वहां बैठकर मैंने यह पाया था कि कोई भी वक्ता सामाजिक गैर बराबरी के खिलाफ नहीं बोला था, इसलिए उस अछूते विषय को मैंने छुआ और भाषण के दौरान हरनाम सिंह की टोका-टाकी का जवाब देता हुआ मैंने अपना भाषण समाप्त किया और फिर इसी घटना की प्रतिक्रिया थी, हरनाम सिंह का मेरे ऊपर हाथ उठाना।
हरनाम सिंह मेरे ऊपर हाथ उठाने के बाद अपनी जगह परेशान और मैं अपनी जगह, लेकिन इस घटना के तुरन्त बाद होली की छुट्टियां हो जाने के बाद किसी को किसी से बात करने का मौका नहीं मिला और छुट्टियां समाप्त होते ही दोनों ही एक दूसरे से माफी मांगने के लिए तैयार थे, जिसे आसान कर दिया था बी0एस0 चैहान ने।

आज भी 1964 की होली के बाद की यह घटना मैं नहीं भुला पाया हूं।

संरक्षण वृक्षों जीवों और वन्यजीवों का या इंसानों का भी

कुछ भागों में वृक्षों के संरक्षण का कानून लागू है। वृक्षों की सुरक्षा आवश्यक है पर्यावरण को संतुलित बनाये रखने के लिए और वन्यजीवों की सुरक्षा भी आवश्यक है। लुप्तप्राय जीवों की सुरक्षा के लिए पशुओं के प्रति क्रूरता को रोकना भी आवश्यक है, पशुओं से काम लेने के लिए। हमारे देश की एक पूर्व केन्द्रीय मंत्री को बराबर पशुओं के प्रति क्रूरता रोकने में लगी हुई हैं और इस कार्य के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर रखा है लेकिन शासन तंत्र का कोई भी व्यक्ति चाहे वह पूर्व हो या वर्तमान इंसानों के प्रति सुरक्षा के लिए नहीं सोचता। अस्तित्व की लड़ाई केवल वन्यजीवों या जलजीवी प्राणियों में ही नहीं बल्कि पक्षियों में भी पाई जाती है। इंसान ही ऐसा प्राणी है जिसमें बुद्धि, विवेक और करूणा का भाव पाया जाता है लेकिन अधिसंख्यक इंसानों ने भी अपने अंदर का यह भाव खो दिया है और पशुवत हो चले हैं। अपने को सभ्य कहने वाला इंसानों का समाज अपने कमजोरों को असभ्य कहता है और इंसानियत से गिरकर ऐसे कमजोरों के लिए उनका स्थान पैरों में रखता है। उन्हें ऊपर उठने और तरक्की करने से रोकता है, अगर वह हिम्मत करके आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं तो यह सभ्य समाज कभी उनका अंग भंग करता है, कभी वन्यजीव समझकर उनका शिकार करता है और कभी पालतू जीव समझकर बिना खाना दिये उनसे भरपूर मेहनत लेता है और इसके खिलाफ अगर कोई आवाज उठती है तो उसे सभ्य समाज सामूहिक रूप से दबा देता है।

सभ्य समाज ही नहीं, तथाकथित सभ्य समाज द्वारा रचित सभ्य एवं असभ्य समाज द्वारा निर्वाचित सरकारें भी तथाकथित सभ्य समाज की मदद में खड़ी रहती हैं और निर्वाचित सरकार में हिस्सेदारी रखने वाले लोग जनसाधारण का प्रतिनिधित्व न करके केवल चुनिंदा लोगों का प्रतिनिधित्व करते और अपने को उनके साथ आगे बढ़ाने के लिए उनकी चाटुकारिता करते हुए दिखते हैं (अपवाद को छोड़कर)। यह चाटुकार प्रतिनिधि केवल जीव-जन्तुओं और जीव-जन्तुओं की सुरक्षा के नाम पर फायदा उठाने वाले लोगों के लिए काम करते हैं, वन्य प्राणियों की सुरक्षा के लिए कानून बनाते हैं लेकिन वनवासियों के विरूद्ध उठ खड़े होते हैं और कभी-कभी उनके विरूद्ध अपने आकाओं को मदद पहुंचाने के लिए युद्ध का एलान करते हैं।

आइए व्रत लें, जीवों के प्रति क्रूरता न अपनाने का, वन्य जीवों और वृक्षों की सुरक्षा का और इसी के साथ वनवासियों और तथाकथित सभ्य समाज द्वारा निर्धारित असभ्य समाज को ऊपर उठाने का, यदि ऐसा न हुआ तो देश खुशहाल नहीं रहेगा।

एक बार एक जज साहब बोले

न्यायिक कार्य से छुट्टी पाने के बाद कुछ देर के लिए जज साहब का हमारे साथ बैठना हुआ। बातचीत के दौरान जज साहब बोले, ‘‘ मेरा एक मुसलमान दोस्त राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का कार्यकर्ता है।’’
मेरा संबंध उस लोकसभा क्षेत्र है जहां से किसी जमाने में सुभद्रा जोशी और अटल बिहारी बाजपेयी चुनाव लड़ा करते थे। सुभद्रा जोशी ने उस क्षेत्र में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से संबंधित बहुत सारे साहित्य अपने क्षेत्र में वितरित किये और तत्समय का यह किशोर रूचिपूर्वक उस साहित्य को पढ़ता रहा। किसान इंटर कालेज, महोली, जिला सीतापुर में मैंने इंटरमीडिएट में जुलाई 1963 में दाखिला लिया, वहां मेरा एक दोस्त एक दिन खेलकूद और व्यायाम के लिए मुझे अपने साथ ले गया तब मुझे पता लगा कि वह व्यायाम और खेलकूद के लिए संघ शाखा लगाती है। दूसरे दिन मेरे मना करने से पहले मेरे दोस्त ने मुझे खुद शाखा में जाने से यह कहकर मना कर दिया कि शाखा संचालक को मेरे वहां जाने पर आपत्ति थी। आगे शिक्षा ग्रहण के दौरान मैंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बारे में सुनकर और पढ़कर बहुत कुछ जाना समझा।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एक ऐसा संगठन है जिसके सामने हमेशा एक काल्पनिक दुश्मन रहता है, बिना दुश्मन की कल्पना किये संघ अपने कार्यकर्ताओं को शिक्षण और प्रशिक्षण नहीं दे सकता। शाखा में व्यायाम खेलकूद के साथ-साथ लाठी-डण्डा भी चलाना सिखाया जाता रहा है और अब आधुनिक युग में आधुनिक हथियारों की भी जानकारी दी जाती है। सिर्फ शाखा में ही नहीं बैठकों में भी मुसलमानों के खिलाफ ज़हर उगला जाता है। मुगल शासकों से लेकर आज के साधारण मुसलमानों तक के खिलाफ वहां बुद्धि का विकास किया जाता है। हिन्दू राष्ट्र कायम करने के लिए हर प्रयास किया जाता है और हर प्रयास करने की शिक्षा दी जाती है। मुसलमानों को पाकिस्तानी कहकर उन्हें देश से निकालने की बात की जाती है और कहा जाता है कि इस देश में रहने वाले मुसलमानों का हिन्दूकरण करना आवश्यक है। संघ की राजनीतिक औलाद भाजपा अपने अलावा हर पार्टी के खिलाफ मुसलमानों के तुष्टिकरण का इल्ज़ाम लगाती है, इसकी धार्मिक और सामाजिक औलादें हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए मुसलमानों के खिलाफ विषवमन करती रहती हैं। जहां पर मुस्लिम समाज के और मुसलमानों के खिलाफ सिर्फ और सिर्फ ज़हर उगला जाए वहां पर कोई मुसलमान रह सकता है यह सोचने का विषय है।
फिर भी सब कुछ जानने के बावजूद जज साहब बोले थे कि उनका एक दोस्त राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का कार्यकर्ता है और यह जानकारी उनको कैसे होती अगर वह खुद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ता न होते।

सोचिए और सोच कर बताइए!

मानव अधिकार आयोग
आयोग का उद्देश्य - भारतीय संविधान ने अपने नागरिकों के इंसान की तरह सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार प्रदान कर रखा है। इंसान, इंसान ही होता है हैवान नहीं हो सकता, फिर भी हमारे देश का एक वर्ग इंसान को हैवान की तरह बांधने, बांधने के बाद छोड़कर हंकाने और कभी-कभी इंसान के सम्मान को छोड़कर बाकी सभी सुख-सुविधाएं उन्हें मुहैया करने के पक्ष में है। अब तो इस मशीनी युग में सारा काम मशीन से किया जाता है और उन मशीनों को चलाने वाले इंसानी दिमाग होते हैं। इस मशीनों का मालिक मशीनों को ठीक-ठाक रखने के लिए इसके रख-रखाव पर ठीक-ठाक खर्च करता है, उसी तरह इस मशीनी युग से पहले जब हमारा समाज जानवरों पर निर्भर करता था, खेती से लेकर ढुलाई तक काम और उससे पहले राजा महाराजा लड़ाई में जानवरों का इस्तेमाल किया करते थे। राजाओं की सेना में घोड़ों और हाथियों के अस्तबल हुआ करते थे और उनकी देखभाल के लिए भी इसी तरह के इंसान लगाये जाते थे जिस तरह आज मशीनों की देखभाल के लिए लगाए जाते हैं। खेती और ढुलाई का काम जानवरों से लेने वाले लोग भी जानवरों की देखभाल इतनी करते थे कि एक-दूसरे में होड़ लगती थी, किसका जानवर कितना अच्छा और मजबूत है। आज हमारा कारपोरेट पुराने राजाओं और खेतीहरों की तरह जानवर की जगह इंसान पाल रहा है और ये पालतू इंसान बहुत खुश होता है, कारपोरेट से अच्छी सुख-सुविधाएं प्राप्त करके।
भारतीय समाज में जानवरों की तरह अच्छी सुख-सुविधा प्राप्त करके जी-तोड़ मेहनत करने की ललक पैदा हुई है। विदेश जाकर अच्छे काॅरपोरेट्स के अस्तबल में रखे जाते हैं, कहीं से उनको किसी तरह से चिन्ता न हो और पूरी लगन के साथ अपने मालिक की सेवा करें और अपनी मेधा उसके लिए ही खर्च करें, हमारा देश हमारा समाज उनके लिए कुछ नहीं है और जिसमें उनका भला है उसी में लगे हैं। यही कारपोरेट हमारे देश में अपनी सत्ता स्थापित करने के लिए प्रयासरत है, अपनी कम्पनियों से मिलने वाला मुनाफा हम देशवासियों को आपस में लड़ाने पर भी खर्च करता है और साथ ही उस मशीनरी पर भी जो देश का प्रशासन चलाती है।
आये दिन देश को कमजोर करने के उद्देश्य से देश के अलग-अलग हिस्सों में ब्लास्ट होते हैं और उन ब्लास्ट में असली गुनहगार गिरफ्त में नहीं आते और बेगुनाहों को पकड़ कर उनका इन्काउन्टर कर दिया जाता है या फिर मौका पाकर उन्हें किसी ब्लास्ट में अभियुक्त बना दिया जाता है या फिर ऐसी घटना में अभियुक्त बनाया जाता है जो कभी घटित न हुई हो। बेगुनाहों को पकड़कर हफ्तों-महीनों और कुछ एक को वर्षों प्रताड़ित किया जाता है और बाद में उनकी गिरफ्तारी दिखाई जाती है और इस प्रकार उनसे सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार छीन लिया जाता है। बेगुनाहों को उनकी गिरफ्तारी की असली तारीख से फर्जी तारीख तक के बीच में जिस तरह प्रताड़ित किया जाता है उस पर मानव अधिकार आयोग यह कहकर विचार नहीं करता कि बाद में उनके खिलाफ मुकदमा कायम हुआ है और उनकी गिरफ्तारी सही है जबकि मानव अधिकार आयोग का यह कर्तव्य बनता है कि देश के नागरिकों द्वारा की जाने वाली इस प्रकार की शिकायतों की जांच अपने स्तर से करे और उसी एजेन्सी से वह जांच न कराए जिसके खिलाफ पीड़ित व्यक्ति की शिकायत है। यदि ऐसा न किया गया तो पुलिस उत्पीड़न और फर्जी इन्काउन्टर का यह सिलसिला बन्द होने वाला नहीं है। आयोग के लिए अपने विवेक इस्तेमाल करना आवश्यक है न कि शासन और प्रशासन का एक अंग बना रहना।

आतंकवाद
दुनिया में वाद की कमी नहीं है - क्षेत्रवाद, जातिवाद, सम्प्रदायवाद। इस तरह के बहुत सारे निकृष्ट वाद हैं; लेकिन कुछ उत्तम वाद भी हैं या यूं कहिए कि विचारात्मक वाद हैं जैसे समाजवाद, साम्यवाद, गांधीवाद, पूंजीवाद और फिर इन्हीं वाद के बीच में उत्पन्न हुआ और पनपा आतंकवाद। अपने किसी वाद को दूसरों पर थोपने या मनवाने के लिए जिस हठधर्मी और बल का प्रयोग किया जाता है यही तो है आतंकवाद। आतंक क्या है, अपने सामने वाले को डराना, भय या दहशत में डालना। शब्दकोषों में आतंक की जो परिभाषा दी गई है वह है भय और दहशत। जो हर युग में रही है, अपने-अपने रूप में।
आज मैं अपने देश में फैले आतंकवाद पर विचार करने बैठा हूं। अंग्रेजों ने भारत पर कब्जा किया, उसे गुलाम बनाया और भारत का सब कुछ लूटकर अपने देश पहुंचाया और जब अंग्रेजों के इस लूट का विरोध हुआ तो विरोध करने वालों को ब्रिटिश साम्राज्य ने आतंकवादी और उनके द्वारा किये जा रहे कार्य को आतंक की संज्ञा दिया। हमारे देश की लड़ाई ने साम्राज्यवाद को समाप्त किया लेकिन समाप्त हुए साम्राज्य ने देश को खण्डित आजादी दिया। उसके लिए हम दोषी किसी को भी माने लेकिन दोष तो ब्रिटिश साम्राज्यवाद का जिसने हमारे नेतृत्व को सम्प्रदाय के नाम पर बांट कर देश का खण्डित किया और खण्डित आजादी पाकर भी हम खुश रहे और उस खुशी में उस साम्राज्य को गुणगान आज भी हम करते नहीं थकत,े वह जो हमारा अधिनायक ठहरा।
अगस्त 1947 में हमने आजादी पाई लेकिन मिली हुई आजादी हमको नहीं भायी और हम भारतीयों के एक गिरोह ने जो देश की आजादी के सिपाहियों का विरोध कर अंग्रेजों की दलाली करता था सिर उठाया और 30 जनवरी, 1948 को देश में पहली आतंकवादी घटना घटित हुई। आजादी के बाद से ही वह गिरोह देश में आतंक का माहौल बनाये रखने के लिए प्रयत्नशील रहा, देश को खण्डित करने का दोषी कोई भी रहा हो लेकिन उस गिरोह ने इस देश के शान्तिप्रिय मुसलमानों को देश के बंटवारे का दोषी होने का प्रचार करके उन्हें आतंकित करने का कार्य किया। आतंक का माहौल इस हद तक पैदा किया कि मुसलमान भी अपने को बंटवारे का दोषी मानकर उस गिरोह के दुष्प्रचार को रोकने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। यही दुष्प्रचार जो और आरम्भ किया गया कि मुसलमान चाहे जितना योग्य हो उसे इस देश में नौकरी पाने का अधिकार नहीं रह गया और इस दुष्प्रचार को भी स्वीकार करके मुसलमानों ने अपने को पीछे कर लिया। नतीजा हुआ कि मुसलमान शिक्षा में, नौकरियों में, उद्योग में और खेती में पीछे होता गया और इस हद तक पीछे हुआ कि तमाम आयोगों की रिपोर्ट उसे दलितों से भी पीछे मानती है।
देश का विकास चाहने वाले लोगों की समझ में यह बात आयी और नतीजे में मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने भी मुसलमानों की पढ़ाई पर जोर देना शुरू किया और उन्हें धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ वैज्ञानिक, तकनीकी, चिकित्सीय तथा प्रशासनिक शिक्षा की ओर अग्रसर किया। कुण्ठित बुद्धि खुली और देश की मुख्य धारा में जुड़कर मुसलमानों ने भी देश की सेवा का व्रत लिया और देश को विकसित करने के लिए बढ़कर आगे आये लेकिन देश की आजादी के विरूद्ध साजिश रचने वाले गिरोह ने उसे स्वीकार नहीं किया और हर शासन के खिलाफ मुसलमानों के तुष्टिकरण की नीति का दुष्प्रचार जोरो शोर से किया और मुसलमानों के तुष्टिकरण के दुष्प्रचार को हर आयोग की रिपोर्ट ने झुठलाया है।
यह मानना होगा कि कांग्रेस विरोधियों से कहीं न कहीं भूल हुई कि उन्होंने देश की आजादी विरोधी गिरोह को अपना साथी बनाया, जिसका भरपूर लाभ उस गिरोह ने उठाया। 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी जिसमें कई प्रमुख मंत्रालय उस गिरोह के मुखिया लोगों के पास रहा, उन सीधे-साधे लोगों ने देश विरोधी गिरोह की साज़िश नहीं समझा और उस समय उस गिरोह के मुखिया लोगों ने शासन के हर तंत्र में अपने लोगों को फिट किया, जिसकी भनक देर में ही सही तत्कालीन समाजवादी नेता राजनरायण को लगी और उन्होंने दोहरी सदस्यता का प्रश्न उठाकर गिरोह को शासन तंत्र से अलग करने का प्रयास किया लेकिन गिरोह की साज़िश कामयाब हुई और सरकार टूट गई। राष्ट्रीय एकता, अखण्डता और भाईचारा पर कुठाराघात हुआ और फिर एक समय आया जब साम्प्रदायिक भावना भड़काकर देश की आजादी का विरोधी गिरोह शासन में आया। उत्तर प्रदेश में उस गिरोह का शासन स्थापित हुआ और केन्द्र के शासन पर भी उसका वर्चस्व कायम हुआ। जिसका नतीजा 6 दिसम्बर, 1992 की देश की सबसे बड़ी आतंकवाद घटना, उस घटना से पहले और बाद में गिरोह की सोच ने हजारों देशवासियों की जान ली, देश की सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाया और देश में आतंक का माहौल पैदा हुआ और बढ़ता रहा।
मुसलमानों ने हिम्मत नहीं हारी, देश के संविधान के अनुसार धार्मिक शिक्षा प्राप्त कर अपने चरित्र का निर्माण और आधुनिक शिक्षा प्राप्त कर देश के विकास में आगे बढ़े, जिसे यह गिरोह सहन नहीं कर सका और केन्द्र तथा राज्य में एक साथ शासन में आने के बाद देश के मुसलमानों के साथ षड़यन्त्र रचने में लगा रहा। धार्मिक शिक्षा देने वाली संस्थाओं चाहे वह नदवद उल उलमा लखनऊ हो या दारूल उलूम देवबंद हर एक के खिलाफ यह गिरोह आतंकवादी शिक्षा देने और आतंकवादी तैयार करने का दुष्प्रचार करने लगा, मदरसों पर छापे डलवाये, साज़िश के तहत कोई छोटी-मोटी घटना कारित कर केन्द्र में तत्कालीन गृहमंत्री और उत्तर प्रदेश में तत्कालीन नगर विकासमंत्री मीडिया पर चिल्लाना शुरू करते थे कि अमुक घटना में लश्करे तोयबा और सिमी (स्टूडेन्ट स्लामिक मूवमेन्ट आफ इण्डिया) का हाथ है और नतीजतन 27 सितम्बर, 2001 को सिमी पर पाबन्दी लगा दी गई, जिसका खुलासा ट्रिब्यूनल के फैसले से होता है। ट्रिब्यूनल के उस फैसले पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगा दी और नये सिरे से सरकार ने सिमी पर पाबन्दी लगाई और सरकार के इसी फैसले से तंग आकर शाहिद बद्र फलाही ने नई पाबन्दी के खिलाफ ट्रिब्यूनल में जाने का इरादा तर्क कर दिया। एक आतंकवादी हो तो गिनाया जाए, गुजरात को मुसलमानों के सामूहिक वध का वर्कशाप बनाकर वहां पर गिरोह के मुखिया ने आतंक का माहौल पैदा किया जो धीरे-धीरे पूरे देश में फैल गया और यह गिरोह जो ब्रिटिश साम्राज्य का समर्थक रहा था अमरीकी साम्राज्यवाद का समर्थक बन बैठा और अपने देश में अमरीका का वर्चस्व कायम करने में कोर कसर नहीं रखा। खूफिया तंत्र में अमरीका, इसराइल और ब्रिटेन का साझा फौजी प्रशिक्षण में अमरीका का हाथ, देश के अर्थतंत्र में अमरीका और इसराइल का हस्तक्षेप बढ़ा है।
26/11 की जांच का नतीजा बताता है कि मुम्बई हमले में डेविड कोलमैन हेडली का पूरा हाथ रहा है जो खुला हुआ सी0आई0ए0 और एफ0बी0आई का एजेन्ट होने के साथ-साथ सी0आई0ए0 और आई0एस0आई0 की बीच की कड़ी है लेकिन हमारी सरकार बेबस और मजबूर उससे पूछताछ भी नहीं कर सकती। अमेरिका जब चाहेगा पाकिस्तानी आतंकी को पाकिस्तान भारत के हवाले करेगा और उसके खुद के लिए इससे अधिक कहना क्या? मालेगांव ब्लास्ट में अभिनव भारत और सनातन संस्था ऐसे संगठनों से सम्बन्धित लोगों का नाम आया है साथ ही संघ परिवार के एक प्रमुख का नाम आया है, आई0एस0आई0 के साथ उनके अच्छे प्रगाढ़ रिश्ते का। संघ परिवार की छत के नीचे पलने वाले अनेक संगठन हैं और इन्हीं संगठनों का नाम आया है। गोआ और मक्का मस्जिद हैदराबाद के ब्लास्ट में। हमारी जांच एजेन्सियां पहले से ही तय कर लेती हैं कि हर ब्लास्ट में मुसलमानों का शामिल होना और तफ्तीश का रूख हर दिशा में न करके सिर्फ एक दिशा में मोड़ दिया करती हैं जिसके कारण सही नतीजा सामने नहीं आता है।
पहले आतंकवादी पैदा करने में मदरसों का नाम आया और उसे सच साबित करने के लिए हमारी जांच एजेन्सियों ने उन मदरसों से पढ़कर निकलने वाले या फिर उनमें पढ़ने वाले नौजवान को निशान बनाया और जब देखा कि मुसलमान नौजवान आधुनिक शिक्षा में भी रूचि रखता है और आगे बढ़ने के लिए शिक्ष ग्रहण कर रहा है तो ऐसे नौजवानों को मुल्जिम बनाया, साथ ही 2006 से 2008 तक वह समय रहा है जब पूरे देश के मुसलमानों को विदेशी आतंकवादी संगठनों से भी जोड़ने का प्रयास किया गया जिसके नतीजे में बंगाल और कश्मीर के कम पढ़े-लिखे नौजवानों को भी अभियुक्त बनाया गया लेकिन उन सब की बेगुनाही के सबूत चिल्ला-चिल्लाकर बोल रहे हैं और कह रहे है कि सारे के सारे नौजवान बेगुनाह हैं। 23 जून, 2007 को लखनऊ में पकड़े गये जलालुद्दीन और नौशाद के तथाकथित बयान पर उ0प्र0 एस0टी0एफ0 द्वारा अली अकबर हुसैन और शेख मुख्तार की गिरफ्तारी हो या 26 जून, 2007 को अलीपुर प0बंगाल के ज्यूडीशियल मजिस्ट्रेट की अदालत से अजीजुर्रहमान को कस्टडी में लिया जाना, जो 22 जून, 2007 से 26 जून, 2007 तक मजिस्ट्रेट के आदेश से एस0ओ0जी0/सी0आई0डी0 प0 बंगाल की कस्टडी में था। 12 दिसम्बर, 2007 और 16 दिस्मबर, 2007 को क्रमशः गिफ्तार किये गये मो0 तारिक कासमी और मो0 खालिद मुजाहिद की गिरफ्तारी 22 दिसम्बर, 2007 को दिखाई गई है। राजस्थान से गिरफ्तार किये गये नौशाद नगीना जिला बिजनौर से गिरफ्तार किये गये, याकूब और उत्तरांखण्ड के हरिद्वार से गिरफ्तार किये गये नासिर की गिरफ्तार लखनऊ से दिखाई गई। फर्जी कार्यवाही फर्जी होती है और वह फर्जी साबित होगी, ऐसा मेरा विश्वास है। हर मुकदमे और हर मुल्जिम को गिना पाना यहां सम्भव नहीं है और न ही यहां उसकी आवश्यकता है, यह तो कुछ उदाहरण उद्धृत किये गये हैं। आफताब आलम अंसारी बेगुनाह साबित हुआ, शेख मुबारक की बेगुनाही ने उन्हे जेल की सलाखों से बाहर किया, मक्का मस्जिद हैदराबाद के मामले में बनाये गये अभियुक्त छोड़े गये और सच्चाई धीरे-धीरे सामने आ रही है यानी कि जो गिरोह गुलाम भारत में देश के खिलाफ साज़िश में लगा हुआ था आज भी उसकी साजिशें रूकी नहीं हैं और पहले वह ब्रिटिश साम्राज्य की दलाली करता था आज अमरीकी साम्राज्य की दलाली में लगा है। देश पर फिर से साम्राज्य स्थापित न हो और देश की सम्प्रभुता बरकरार रहे इसलिए हमें असली आतंकवादी को पहचान करके आतंकवाद से बचाने के लिए अपने को चैकस रखना होगा और आतंकवादी गिरोह बेगुनाहों को आतंकवादी कहकर खुद आतंकवाद फैला रहा है, समझना होगा यही है असली आतंकवाद।

एक समय था जब रेल यात्रा सुरक्षित हुआ करती थी। धीरे-धीरे एक समय ऐसा आया जब रेलवे की टिकट खिड़कियों से लेकर टेªन के अन्दर गिरहकटी हुआ करती थी। टिकट खिड़कियों पर लिखा रहता था गिरहकटों से सावधान। गिरहकटों से सावधान पर निगाह पड़ते ही लोग अपनी-अपनी जेब देखने लगते थे और इसी में गिरहकट भांप जाते थे कि उन्हें किस जेब पर हाथ साफ करना है। टिकट हाथ में आने के जब बचा हुआ पैसा टिकट खरीदने वाला अपनी जेब में डालता था तब वह अवाक रह जाता था क्योंकि उस वक्त तक उसकी जेब साफ हो चुकी थी। लम्बी दूरी के मुसाफिर के पीछे ट्रेन में भी गिरहकट लगे रहते थे और जेब न साफ कर पाने की स्थिति में एक गिरहकट दूसरे गिरहकट के हाथ मुसाफिर को बेच दिया करता था और पूरे रास्ते में कहीं न कहीं उसकी जेब साफ हो जाती या सामान गायब हो जाता था। ट्रेनों में टपके बाजी भी जोरों पर होती थी। प्लेटफार्म से ट्रेन के चलने के समय खिड़कियों से हाथ की घड़ियां, कान के झुमके वगैरह भी खींचने का चलन एक जमाने में जोरों पर था।

चोरी, गिरहकटी और टपकेबाजी के बाद टेªन डकैतियों का युग आया। अक्सर टेªन डकैतियां समाचार-पत्रों की खबरें बनी रहतीं और आज भी कभी-कभी टेªन डकैती हो जाती है। टेªन डकैती एक बड़ी घटना हुआ करती थी जिस पर सरकार तथा रेल विभाग का ध्यान गया और टेªनों में मुसाफिरों की हिफाज़त के लिए गार्ड भी तैनात किये गये और इस तरह डकैतियों का सिलसिला काफी हद तक थमा, अगर वह किसी पुलिस वाले के द्वारा न डाली गयी हो क्योंकि ऐसी खबरें भी अक्सर आती रहती हैं।

राजनीति में भी आने वाले लोग ट्रेनों का दुरूपयोग करने से नहीं चूकते और नारा लगाते हुए चलते हैं - ‘‘एक पैर रेल में एक पैर जेल में’’ और इन रेल पर बिना टिकट चलने वालों के पैर जेल तो कभी नहीं गये लेकिन रेल में चढ़ने के बाद टिकट रखने वाले मुसाफिरों को तकलीफ जरूर पहुंचाया। स्लीपर क्लास वालों को बैठने का मौका न देकर उनकी सीटें छीन लेते रहे, ये हैं राजनीतिक लोग; लेकिन वो लोग भी इन राजनीतिक लोगों से कम नहीं जिनकी जिम्मे देश की सुरक्षा सौपी गयी है। अक्सर फौजी लोग ट्रेन से आम मुसाफिरों को बाहर फेंक दिया करते हैं क्योंकि वह अपना अधिकार समझते हैं कि देश की सुरक्षा के बदले वे किसी भी आम नागरिक को चोट पहुंचायें।

इतना सब कुछ मैंने सिर्फ इसलिए कहा क्योंकि भाजपा की एक महारैली दिल्ली में थी, जिसमें पूरे देश के भाजपाई, देशभक्त उमड़ पड़े, एक बहुत बड़ा जत्था मुगलसराय से भी गया था। 20 अप्रैल, 2010 को 7ः30 बजे ट्रेन- 2397 महाबोधी एक्सप्रेस मुगलसराय पहुंची, जिसके कोच नम्बर एस 5 में बर्थ नम्बर 1, 9, 10, 11, 12, 13 और 14 और एस 13 व एस 14 में क्रमशः बर्थ नम्बर 13 और 23। अल्लाह की गाय के नाम से जाने जाने वाले तबलीग़ी जमात के लोग जाने को थे जो टेªन पर सवार हुए जहां देखा कि उनकी सीटों पर दूसरे लोग बैठे हुए थे। उन लोगों ने अपनी सीट पर बैठे लोगों से सीट खाली करने को कहा, तो उन लोगों ने सीट नहीं खाली की जिसकी शिकायत सिक्योरिटी गार्ड से की गई। शिकायत करने पर भाजपाइयों ने नारेबाजी शुरू कर दी और कहा कि वे उस ट्रेन में कठमुल्लाओं को नहीं जाने देंगे और यह भी कहा कि अगर उनसे बल प्रयोग करके सीट खाली करा ली गई तो वे आगे जाकर कठमुल्लाओं को ट्रेन से बाहर फेंक देंगे। इसी के साथ ट्रेन के दूसरे डिब्बों में बैठे अपने दूसरे साथियों को बुलाने के उद्देश्य से नारेबाजी तेज कर दी, जिनकी मंशा भांप कर तबलीग़ी जमात के लोग ट्रेन से उतर गये और जाकर टिकट वापस कर दिया। ऐसी स्थिति में कौन हिम्मत करेगा, टेªन से सफर करने की। जब वैध टिकट रखकर सफर करने वालों की सुरक्षा की कोई गारन्टी नहीं है और बिना टिकट चलने वालों के खिलाफ या बिना टिकट चलने वालों को सफर से रोकने के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कोई उचित कार्यवाही न की जाए। है न यह असुरक्षित रेल यात्रा, क्या आप इसके लिए तैयार हैं।


प्रधानमंत्री की दोस्ती

अभी ताज़ा बयान है हमारे प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह कि उनकी दोस्ती ईरान के साथ है और ये दोस्ती अक्षुण रखने के लिए वह हर हाल में ईरान के साथ हैं। ऐसा ही दावा भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व0 चन्द्रशेखर ने भी इराक के साथ किया था और इराक के साथ दोस्ती बनाये रखने का दम भरते रहते थे। आज से नहीं सदैव से भारत फिलिस्तीन के साथ रहा है और फिलिस्तीन की हर सम्भव सहायता करने का दम भरता रहा है। कुछ ऐसा ही चरित्र अमेरिका का फिलिस्तीन के साथ रहा है और वह बराबर कहता रहा है कि फिलिस्तीन को वह इजराइल के हाथों बर्बाद नहीं होने देगा; लेकिन नतीजा सबका सामने है।

जिस वक्त इजराइल फिलिस्तीन बर्बरतापूर्ण हमले करता है, आम नागरिकों का संहार करता है, अस्पतालों और नागरिक क्षेत्रों पर हमले करके बेगुनाह और जिन्दगी से जूझ रहे बीमारों का संहार करता है, कुल मिलाकर खून की होली खेलता है। ऐसे वक्त पर अमेरिका बोल उठता है कि इजराइल गलत कर रहा है और वह उसे ऐसा नहीं करने देगा, लेकिन मामला ज्यों का त्यों बना रहता है। इजराइल की बर्बता बढ़ने पर अमेरिका भाषा बदली हुई है और वह फिलिस्तीन को इंसाफ दिलाने की बात कर रहा है।

अब देखिये भारत सरकार का व्यवहार, कथनी और करनी का अन्तर। दोस्ती फिलिस्तीन के साथ है लेकिन मदद इजराइल की। फिलिस्तीन कमजोर पड़ता है इसलिए मदद इजराइल से। भारत सरकार इधर काफी दिनों से फिलिस्तीन के साथ दोस्ती समाप्त करके इजराइल के साथ दोस्ती बढ़ाए हुए है। सुरक्षा हथियारों की खरीदारी देश के लिए घातक टेक्नोलाॅजी (चाहे वह किसी क्षेत्र में ही क्यों हो), इजराइल की खूफिया एजेन्सी मोसाद की मदद, उससे प्रशिक्षण, सैनिक प्रशिक्षण प्राप्त करना भी भारत सरकार के एजेण्डे में है लेकिन दोस्ती और हमदर्दी फिलिस्तीन के साथ ही है।

देखा है भारत सरकार की दोस्ती इराक के साथ भी। भारत के प्रधानमंत्री कहते नहीं थकते थे कि भारत पूरी तरह इराक के साथ है। एक तरफ अमेरिका इराक की ताकत की जांच रासयनिक हथियारों की जांच के बहाने करके तत्कालीन इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन के बड़बोलेपन की हकीकत जानना चाहता था और एशिया में अपना एक ठिकाना बनाने के लिए प्रयासरत था। इसमें वह कामयाब हुआ और हमारे भूतपूर्व प्रधानमंत्री बराबर यह कहने के बावजूद कि वह अमेरिका की सैन्य सहायता नहीं करेंगे, वह चाहे किसी भी प्रकार की क्यों हो अमेरिकी लड़ाका विमानों को ईंधन देते रहे, इसे क्या कहा जाए, अमेरिका के दबाव में काम करना या और कुछ!

अब परखना है अपने वर्तमान प्रधानमंत्री के दावे को, मनमोहन सिंह जी ने अभी कहा है कि वह पूरी तरह ईरान के साथ हैं और ईरान के साथ किसी प्रकार का प्रतिबंध लगाने के खिलाफ हैं। अभी बार-बार डेविड कोलमैन हेडली को अपनी कस्टडी में लेने का उनका दावा सफल नहीं हो सका है, अमेरिका के बुलावे पर वह हाजिरी देकर वापस गये हैं, अपनी बात मनवाने का दम उनके अन्दर नहीं है (हां, अमेरिका की हर बात मानने को वह तत्पर रहते हैं) अमेरिका के साथ यह दोस्ती, दोस्ती तो नहीं कही जा सकती, उसे तावेदारी का नाम अवश्य दिया जा सकता है। एक तावेदार अपनी दोस्ती उस देश के कब तक कायम रख सकता है जबकि वह जिसके साथ दोस्ती का दम भरता है उस देश का दुश्मन नम्बर एक है, जिसका कि भारत के प्रधानमंत्री तावेदार हैं। मेरी नेक सलाह है कि प्रधानमंत्री जी ईरान के साथ दोस्ती का दावा करने के बजाय अपने देश की सम्प्रभुता बचाये रखें। यही देश के प्रति वफादारी है और दोस्ती भी।

इसराइली रणनीति
हैं कवाकिब कुछ नज़र आते हैं कुछ,
देते हैं धोखा ये बाज़ीगर खुला।
दिनांक 8.4.2010 को महाराष्ट्र विधान सभा में जो कुछ हुआ किसी से छिपा नहीं है। राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के विधायक जितेन्द्र अवहार्ड ने सदन को बताया कि अभिनव भारत और सनातन प्रभात जैसे अतिवादी संगठन ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संध के वर्तमान सर्वसंघ चालक श्री मोहन भागवत की हत्या कारित करने का कार्यक्रम बना लिया था। उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तानी खूफिया एजेन्सी आई0एस0आई0 की मदद से हिन्दुत्ववादी संगठन देश में अराजकता फैलाने के लिए प्रयासरत हैं और उन्होंने ही अजमेर की दरगाह में और समझौता एक्सप्रेस में बम धमाके किये थे। ए0टी0एस0 महाराष्ट्र के स्तम्भ रहे स्वर्गीय हेमन्त करकरे ने भी श्री मोहन भागवत को इस तथ्य की जानकारी देते हुए उन्हें आगाह किया था, कारण कि वह संगठन मानते हैं कि श्री मोहन भागवत जैसे लोग हिन्दुत्व के रास्ते से भटक गये हैं। यदि श्री मोहन भागवत की हत्या कर दी गई होती तो उसके नतीजे में आज यह देश जल रहा होता और आग बुझाने के सारे प्रयास निरर्थक सिद्ध होते। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ जो अपने को हिन्दुत्व का ध्वजावाहक बताता है, जिसके इस दावे को लोग जाने-अनजाने स्वीकार भी करते हैं। यदि इस संगठन के सर्वसंघ चालक जिनकी अपनी प्रतिष्ठा है मार दिये गये होते तो अविश्वास का कोई कारण नहीं बनता कि उनकी हत्या किसी मुसलमान या मुस्लिम संगठन ने की। 1984 अभी लोग भूल नहीं पाये हैं जब देश की प्रधानमंत्री की हत्या कर पूरे देश में पूरे सिक्ख समाज को गुनहगार मानकर उन्हें जिन्दा जलाया गया, उनका घरबार और दुकाने लूटीं गईं, कुल मिलाकर जानी-माली नुकसान पहुंचाया गया। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मानस पुत्र स्वामी लक्ष्मणानन्द सरस्वती उड़ीसा के जनजातियों के बीच में चकाबाद नामक स्थान पर आश्रम बनाकर निवास करते और गुरूकुल संस्कृत विद्यालय चलाते तथा मुख्य रूप से धर्मान्तरण का आरोप लगाकर इसाइयों में दहशत पैदा करने का काम करते थे। स्वामी जी की भी हत्या कैसे हुई यह ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है लेकिन उनकी हत्या के बाद उत्पात मचाकर इसाइयों की जान-माल और धर्म स्थलों को किस तरह नुकसान पहुंचाया गया, यह घटना किसी से छिपी नहीं है और कन्धमाल की यह घटना आज भी मानवता के लिए काम करने वाले लोगों के रोंगटे खड़े कर देती है।
क्या-क्या गिनाया जाए, नानदेड़ में हिन्दुत्ववादी संगठन के बाद से मुस्लिम पहचान बताने वाले कुर्ते-पायज़ामें, टोपी-दाढ़ी बरामद किया गया। हैदराबाद की मक्का-मस्जिद पर ब्लास्ट करके बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों को फंसाया गया। उत्तर प्रदेश की कचहरियों में ब्लास्ट कराकर गुनहगारों को न पकड़कर बेगुनाहों को पकड़ा गया। बाटला हाउस में हत्या करके आजमगढ़ के बेगुनाहों को फंसाया गया, इस तरह की घटनाओं की गिनती बहुत है। इन्हें गिनाने के लिए काफी समय लगेगा, लेकिन कुछ घटनायें ऐसी भी हैं जिसमें गुनहगारों का चेहरा सामने आया। कानपुर में बजरंग दल के दो लोग अपने ही विस्फोटक से जान गवां बैठे और फाइल बंद कर दी गई। हेमन्त करकरे जैसा जांबाज़ ही था जिसनें मालेगांव ब्लास्ट के असल गुनहगारों को पकड़ा और नतीजा आपके सामने है। गोवा में भी असली चेहरे सामने आये लेकिन पूणे में विवेचना जारी है, जबकि वहां भी सबद हाउस को निशाना बनाया जाना बताया गया है।
दम है, महाराष्ट्र विधान सभा में जितेन्द्र अवहार्ड द्वारा खुलासा किये गये तथ्यों में अगर कहीं अभिनव भारत और सनातन प्रभात अपने लक्ष्य में सफल हो जाते तो सचमुच हिन्दु-मुसलमान के बीच का तांडव रोके नहीं रूकता और हमारी भारत माता अपने सपूतों के आपसी उन्माद के नतीजों में उनके बहते खून पर विलाप कर रही होती। आज हमें सतर्क रहना है कि किये जा रहे इस तरह के षड़यन्त्रों से जिन्हें हम समझते हैं हौर हम अपनी भाषा में इसे कहते हैं ‘‘इसराइली रणनीति’’। हमला ऐसा करो कि खुद को भी नुकसान हो और लोग ये समझें कोई क्यों अपने को नुकसान पहुंचायेगा और आरोप आये उनपर जिनको हम गुनहगार साबित करें।

भाजपा की सलाह
केन्द्र में शासन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में लोकतांत्रिक संगठन का है। भारतीय जनता पार्टी प्रमुख विपक्षी दल है और उसका काम केवल विपक्ष की भूमिका अदा करना और अपने संगठन के सदस्यों को परामर्श देना और आवश्यकता पड़े तो विप जारी करना है। हां, गोधरा काण्ड के बाद गुजरात में जो कुछ हुआ उस पर भाजपा को मुखर होना था लेकिन वह न तो नरेन्द्र मोदी के पक्ष में और न ही विपक्ष में बोली, जबकि नरेन्द्र मोदी भाजपा के थे। अगर कोई कुछ बोला तो दबे स्वर में तत्कालीन भारत के प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी बोले और वह स्वर इतना दबा हुआ था कि भीड़ में खोकर रह गया। श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उस समय केवल इतना कहा था कि तत्काली गुजरात के मुख्यमंत्री को राजधर्म का पालन करना चाहिए। राजधर्म का पालन करने का परामर्श श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसलिए दिया था कि उनको पता है कि भारत एक धर्म-निरपेक्ष लोकतंत्र में विश्वास रखता है और इस देश में हिन्दु-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई सब को (कुछ क्षेत्रों में छोड़कर) तमाम अधिकार प्राप्त हैं। कुछ क्षेत्रों को छोड़कर, की समीक्षा इस समय नहीं कर रहा हूं क्योंकि इसके लिए काफी समय की आवश्यकता है। देश आतंकवाद के दंश को झेल रहा है और आतंकवाद को समाप्त करने के लिए केन्द्र अथवा राज्य सरकारों द्वारा कोई कारगर कदम नहीं उठाया गया है, बल्कि आतंकवाद का हौवा खड़ाकर डराने वालों के डर से हमारी सरकार कुछ कर पाने में असमर्थ है। अमेरिकी साम्राज्यवाद अपने मित्र राष्ट्रों की मदद से पूरी दुनिया पर हावी हो चुका है, अगर वह कह देता है कि आतंकवाद अमुक देश से निकलकर भारत के लिए खतरा बना हुआ है तो हममें यह साहस नहीं कि हम अमेरिका की इस कही बात को नकार सकें जबकि हमें पता है कि लीबिया के राष्ट्रपति पर अमेरिकी हमला गलत था, ईराक में घातक हथियार रखने का आरोप लगाकर पूरी छानबीन कर लेने के बाद घातक हथियार रखने का आरोप लगाकर अमेरिका ने ईराक पर हमला किया, अफगानिस्तान में वह आज भी तबाही मचा रहा है जबकि अफगानी आतंकवाद को पैदा करने वाला स्वयं अमेरिका ही है। मदद करने के नाम पर या मदद देकर अमेरिका ही पाकिस्तान की न केवल विदेशी नीति बल्कि आन्तरिक नीति भी तय करता है। इतना सब कुछ जानते हुए हमारी खामोशी अमेरिका को मूक समर्थन देती है बल्कि और सख्त ज़ुमला अगर इस्तेमाल किया जाए तो हमारे देश के लगभग सभी राजनीतिक दल अमेरिका के एजेन्ट का काम करते हैं।
लोकतंत्र में जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता की सरकार होती है लेकिन हमारी सरकारें जनता द्वारा चुनी अवश्य जाती हैं लेकिन न तो वह उनकी अपनी और उनके लिए यह सरकार होती है। चुनाव इतने खर्चीले हैं कि जन-साधारण चुनाव लड़ने की सोच भी नहीं सकता, जब तक कि उसकी मदद कार्पोरेट स्वयं या कार्पोरेट के एजेन्ट के तौर पर काम करने वाले राजनीतिक दल उसकी मदद करें। मैं दलों को कार्पोरेट का दलाल इसलिए मानता हूं कि जनता को उसके अपने देश की भूमि पर आज़ादी के साथ अपनी रोजी-रोटी कमाने का अवसर नहीं दिया जाता बल्कि उनसे उनकी जमीन छीनकर उन्हें कार्पोरेट के रहमोकरम पर भी नहीं रहने दिया जाता बल्कि उनको बेघर करके दर-दर के लिए भटकने को मजबूर कर दिया जाता है। 1960 की दहाई में सरकार ने जबरों को आगे बढ़ाया, दलितों को बेघर होने के लिए मजबूर किया, जबरों की सेना बनी तो उस पर अंकुश नहीं लगाया, इसीलिए नारा लगा कुछ सरफिरों की ओर से - ‘‘आमार बाड़ी तोमार बाड़ी नक्सल बाड़ी-नक्सल बाड़ी’’।

समय से बीमारी का इलाज नहीं किया गया बल्कि बीमारी को दबा देने की कोशिश की गई। नक्सलवाद बढ़ता गया और कभी पीपुल्स वार ग्रुप के नाम से चलता रहा और कभी माओवाद के नाम से और आज जो आन्दोलन 1960 की दहाई में जन्मा उसने आज विकराल रूप ले लिया क्योंकि जिन अवयवों से इसका जन्म हुआ वह अवयव समाप्त नहीं किये गये बल्कि जुल्म को बढ़ने दिया गया, सरकारें भी जालिमों का साथ देती रहीं और नतीज़ा आज सामने है। अब भी समय है जुल्म को समाप्त करने का, जालिमों का पंजा मरोड़ने का और राजनीतिक दलों को कार्पोरेट का एजेन्ट न बनकर जन-प्रतिनिधि बनकर जन-साधारण के कल्याण के लिए काम करने का। अगर कोई देश का भला चाहता है तो किसी नेता को, मंत्री को या दल को इस तरह की सलाह देना होगा न कि अपने ही देश की जनता का दमन करने की सलाह। भाजपा की देश के गृहमंत्री को दी गई सलाह यह प्रकट करती है कि भाजपा भी देश के जन-साधारण के दमन के लिए तत्पर है, इसमें और कांग्रेस में कोई अन्तर नहीं है इसलिए कि इससे पहले भी महिला आरक्षण विधेयक पर कांग्रेस का साथ दे चुकी है।

कुत्ता

मुझे जानवरों का कोई शौक नहीं है और न ही जानवरों में कोई दिलचस्पी। वे इसलिए कि जानवर पालने के लिए जानवर बनना जरूरी है, चाहे वह थोड़ी ही देर के लिए। यह जरूर है कि जानवरों से पैदा होने वाली चीज़ का इस्तेमाल करता हूं। जानवरों से एक सीख जरूर मिली है कि एक जानवर दूसरे जानवर को कभी कुछ देता नहीं है, शायद इसीलिए मैथिली शरण गुप्त ने लिखा हैः यही पशु प्रवृत्ति है कि आप-आप ही चरे,
मनुष्य है वही जो मनुष्य के लिए मरे।

आज अगर मैथिलीशरण गुप्त जीवित होते तो हर पल जीवित रहते हुए मरते रहते, वो इसलिए कि मनुष्य ने भी पशुता को चरितार्थ कर लिया है। एक मनुष्य दूसरे मनुष्य को खते हुए नहीं देख पाता अच्छा खाना देखकर चाहता है कि सामने वाले का खाना ऐन केन प्रकारेण उसकी प्लेट में आ जाए। बिना परिश्रम के वह धनवार बन जाए। अपनी सेवा के लिए सेवक भी रखे और सेवा के बदले सेवक को कुछ न देना पड़े तो फिर कहना क्या।

लगता है कि विषय से भटक गया हूं मैं। लिखने बैठा कुत्ते के विषय में और लिख डाला पशु और मनुष्य के विषय में और शायद मैंने ऐसा इसलिए किया कि अपन आदत के अनुसार मैंने कभी कुत्ता भी नहीं पाला। हां, मैं अपने बड़े भाई के साथ जब रहता था तो उन्होंने जरूर एक बार कुतिया पाली थी। कुत्तों के विषय में जानकारी न रखते हुए भी मैंने विषय कुत्ता चुना और इसीलिए इस विषय पर बहुत ज्यादा लिख नहीं पाऊंगा, फिर भी जितना ज्ञान है उसको यहां उड़ेलने की कोशिश में हूं।
मैं गांव में पैदा हुआ पला-बढ़ा, इसलिए गांव की गलियों में घूमने वाले कुत्तों की जानकारी जरूर रखता हूं। मेरे गांव में एक डूंडा कुत्ता रहता था लेकिन था बहुत तेज। उसका उसके क्षेत्र में इतना आतंक था कि बच्चे हाथ में रोटी लेकर बाहर नहीं निकलते थे, बड़े खुले में बैठकर खाना नहीं खा सकते थे, वो इसलिए कि वह झपट कर लोगों से खाना छीन लेता था। ऐसे भी कुत्ते थे जो आदमियों से डरे सहमे रहते, एक बार एक डण्डा पटकने से भाग खड़े होते और अपने से मजबूत कुत्ते को देखकर दुम दबाकर दांत निपोर देते थे। अगर अपने से मजबूत कुत्ता उनकी तरफ झपटा तो झपटने वाले कुत्ते की मंशा भांप कर ही वो लेट जाते। अब देखिए अपना समाज, क्या अपना समाज इन कुत्तों के समाज से भिन्न है। मनुष्य समाज भी अपने से कमजोर को दबाकर रखता है। कोशिश करता है कि उसका हिस्सा भी खुद खा जाए और दूसरा समाज जो उससे डरता है उसी कमजोर और डरपोक कुत्ते की तरह अपने से मजबूत के सामने दांत निपोरता रहता है। उसका जूठन पाने के लिए झूठी तारीफें करता और क्रोध की मुद्रा में आने पर उस मुद्रा को भांपने के बाद चित पड़ जाता है। गांव से निकलकर कस्बे में आया। मैंने अपने बड़े भाई को देखा उन्होंने कुतिया पाल रखी थी और लोगों को बड़े गर्व से बताते थे कि ये कोई मामूली नस्ल की नहीं है और पहली बार उनकी ही जबान से सुना कि वह अलसीशियन नस्ल की है, भेड़िये की नस्ल से मिलती-जुलती। बड़े भाई का शौक देखकर उनके कहते रहने से मुझे भी उस कुतिया का ध्यान रखना पड़ता था। उसके लिए रातिब का इंतजाम करना पड़ता था, दूध और रोटी तो रोज ही खिलाया जाता। जब तक वो कुतिया नहीं थी मेरे भतीजों के लिए घर में दूध खरीदकर आता था, लेकिन कुतिया पालने से अपने को प्रतिष्ठित होने के एहसास से घर में एक गाय भी पाल ली गई। मैं आज भी सोचता हूं कि गाय पालनी थी तो अपने और बच्चों के लिए क्यों नहीं पाली गई और पाली गई भी तो कुतिया के लिए। उस वक्त भी मेरे अन्दर कुतिया से छोटे होने का एहसास जागा था, लेकिन वो एहसास मन्द पड़ जाता था, जब सोचता था कि शायद वो शिकार में कुछ मददगार साबित हो। कभी-कभी मैं उस कुतिया को लेकर नदी की तरफ चला जाता था, जहां झाड़ी में बहुत सारे छोटे-छोटे जानवर रहते थे और मैं उस कुतिया से उम्मीद रखता था कि वह उन छोटे जानवरों को पकड़ लेगी, लेकिन मुहावरा गलत नहीं है, शिकार के वक्त कुतिया ...........................। कुतिया को शिकार की तरफ ललकारने के लिए हमेशा मैं उससे आगे रहा और वो कभी पुचकारने पर भी मुझसे आगे नहीं हो सकी, इस लिए इस मुहावरे को मैंने तजुर्बे के बाद कहा गया मुहावरा समझा।

एक आदत मैंने और देखी कुत्तों में कि अगर आप एक हड्डी फेंकिये तो कोई कुत्ता अपने सामने वाले कुत्ते को उस हड्डी तक नहीं पहुंचने देना चाहता। इसीलिए शायद यह मुहावरा भी कहा गया - कुत्ते के सामने हड्डी डालना। इस मुहावरे का इस्तेमाल समर्थ लोग खूब करते हैं। हड्डी डालकर लड़ाते और तमाशा देखते हैं और जब लोगों की नजर हड्डी पर होती है तब हड्डी डालने वाला अपने लिए मांस के प्रबंध में लग जाता है। मांस खाता है और हड्डी के लिए लड़ाता है।

क्हा जाता है कि कुत्ता एक वफादार जानवर है और अपने मालिक से वफादारी करने में अपनी जान तक की बाजी लगा देता है। समझदार लोग कुत्ते की वफादारी की जानकारी रखने के कारण कुत्ता पालते हैं, उन्हें दूध और मांस खिलाते हैं। यही सब देखकर पं0 सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ के कलम से स्वर फूटे:
श्वानों को मिलता दूध-वस्त्र, भूखे बालक अकुलाते हैं,
मां की छाती से चिपक, ठिठुर जाड़े की रात बिताते हैं।

यह श्वानों को जो दूध-वस्त्र मिलता है वह उनकी हैसियत बढ़ाने या उनकी भूख ठीक से मिटाने के लिए मानवतावादी दृष्टिकोण से नहीं होता। उन्हें दूध-वस्त्र मिलता है उनकी सेवाओं के बदले। अक्सर बात चली है कि अमुक घर में ऐसे मोटे और तन्दुरूस्त कुत्ते हैं जो किसी को फाटक से अन्दर नहीं जाने देते। अगर कोई हिम्मत करके आना भी चाहे तो उसकी बोटियां नोच डालते हैं और इस प्रकार उनके घर में कुत्ते रहने से वो और उनका घर सुरक्षित रहता है। इसके अतिरिक्त कुछ ऐसी नस्ल के कुत्ते हैं जो देखने में सुन्दर लगते हैं और उनकी सुन्दरता इतनी अधिक होती है कि कहीं-कहीं उन कुत्तों के मुकाबले उनके बच्चे नहीं आकर्षक लगते। इसी कारण ऐसे लोगों की गोद में उनके बच्चों की जगह ये कुत्ते पाये जाते हैं। इतना सब होते हुए भी कोई व्यक्ति अपने को कुत्ता कहलवाना नहीं पसंद करता। वह चाहे जिस कुत्ते के चरित्र का हो, अगर कोई उसे कुत्ता कह दे तो कुत्ते की तरह उसका मुंह नोंच लेता है।
हम मनुष्य हैं, मनुष्य रहें, मानवता के लिए अपने को समर्पित कर दें, स्वयं में मानवता लायें, कुत्ते के चरित्र से अपने को दूर रखें तो यह मानव समाज, मानव समाज बन जाएगा और इस समाज को हम कुत्ता समाज से अलग कर सकेगें। इसलिए हम अपने लिए जब कुत्ता शब्द उचित नहीं समझते तो आवश्यक है कि कुत्ता चरित्र छोड़कर मानव चरित्र अपनायें। बस इतने मात्र के लिए मैंने आज कुत्ता विषय पर कुछ पंक्तियां लिख डालीं।

पाकिस्तान की हठधर्मी

26.11.2008 को हमला हुआ भारत के शहर मुम्बई में कई स्थानों पर। पुलिस द्वारा एक आतंकी अज़मल आमिर कस्साब को जिन्दा गिरफ्तार करने का दावा किया गया। यह जांच करना कि अज़मल आमिर कस्साब कौन है, कहां से और कैसे आया, सम्बन्धित मुकदमे के विवेचक का काम था जो उन्होंने किया। उसकी संलिप्तता पर निर्णय न्यायालय को देना है जिससे मुझे कोई मतलब नहीं, इसलिए कि उसके बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है। इसी मुकदमे में दो और लोगों को अभियुक्त बनाया गया जिनके नाम क्रमशः फहीम अरशद अन्सारी और सबाउद्दीन हैं। सबाउद्दीन को उत्तर प्रदेश एस0टी0एफ0 ने 10.02.2008 को लखनऊ से और फहीम अरशद अन्सारी को 10.02.2008 को रामपुर से गिरफ्तार करने का दावा उत्तर प्रदेश एस0टी0एफ0 द्वारा किया गया, जो गिरफ्तारी के बाद लखनऊ व बरेली जेल में रखे गये और बराबर मुम्बई पर हुए हमले की तारीख तक उन्हीं जेलों में रहे, फिर भी उन्हें मुम्बई हमलों का अभियुक्त बताकर उनके विरूद्ध मुकदमे कायम किये गये और उन मुकदमों का परीक्षण मुम्बई की विशेष न्यायालय में हुआ। परीक्षण पूरा हो चुका है, बहस समाप्त हो चुकी है, निर्णय शेष है लेकिन यह सब होते हुए भी पाकिस्तान ने रट लगा रखी है कि अज़मल आमिर कस्साब और फहीम अन्सारी को उसके सुपुर्द किया जाए। घटना घटित होती है भारत में अभियुक्तों पर अभियोग है भारत की आतंकी घटना में शामिल रहने का, इन अभियुक्तों के खिलाफ पाकिस्तान भूभाग में कोई अपराध कारित करने का आरोप नहीं है और पाकिस्तान में अपराध न कारित होने के कारण इन अभियुक्तों के खिलाफ पाकिस्तान की अदालत में कोई मुकदमा नहीं कायम किया जा सकता, फिर भी हठधर्मी है पाकिस्तान की, कि इन अभियुक्तों को उसके सुपुर्द किया जाए।
मुम्बई की आतंकी घटना में संलिप्तता बतायी जाती है डेविड कोलमैन हेडली की जो इस समय अमेरिका की गिरफ्त में है। यह वही डेविड कोलमैन हेडली है जिसके सम्बन्ध सी0आई0ए0 से बताए गये हैं। इस डेविड कोलमैन हेडली को भारत द्वारा अमेरिका से दबी जुबान में मांगा गया है, कभी अमेरिका ने कहा कि आवश्यकता पड़ने पर उसे भारत को दिया जा सकता है और कभी बिल्कुल इसका उल्टा कहा गया है। अगर डेविड कोलमैन हेडली की संलिप्तता मुम्बई के 26.11.2008 की आतंकवादी घटना में पायी जाती है तो उसके प्रत्यावर्तन के लिए भारत द्वारा प्रयास किया जाना आवश्यक है क्योंकि वह भारत का अपराधी है। अगर पाकिस्तान भारत के अपराधी अज़मल आमिर कस्साब और फहीम अरशद अन्सारी को मांगता है तो उसकी ये हठधर्मिता डेविड कोलमैन हेडली के लिए अमेरिका के प्रति क्यों नहीं दिखाई देती? इसका मतलब साफ है कि पाकिस्तान अमेरिका के सामने घुटने टेक कर रहता है और उसी की शह पर वो भारत के सामने सीना तानकर हठधर्मी करता है। अपराधिक घटना भारत भूभाग पर घटित होती है, संलिप्तता पाकिस्तानी नागरिक और एक समय में सी0आई0ए0 के एजेन्ट रहे व्यक्ति की पायी जाती है, ऐसी स्थिति में विवेचना का अधिकार केवल हमारे देश को है। संदिग्ध व्यक्ति से पूछताछ का अधिकार हमारे देश की विवेचना करने वाली विवेचना एजेन्सी को है और यदि किसी विदेशी राष्ट्र में साक्ष्य पाये जाने की उम्मीद होती है तो उस साक्ष्य को ग्रहण करने का अधिकार भी हमारे देश की विवेचना करने वाली एजेन्सी को हैय लेकिन यहां तो सब कुछ उल्टा हुआ, घटना घटित होती है भारत में, विवेचना करती है अमेरिका की एफ0बी0आई0। प्रक्रिया को ताक पर रखकर घटना की चश्मदीद गवाह बतायी जाने वाली अनीता उदैया को एफ0बी0आई0 उठा ले जाती है अमेरिका और फिर वापस छोड़ जाती है लेकिन हमारे देश की सार्वभौमिकता इतनी बड़ी घटना पर चुप्पी साध लेती है। सम्प्रभुता एक अवयव है, देश का सरकार दूसरा अवयव है उसी का, भूमि और आबादी भी उसी के अवयव हैं लेकिन हमारी सम्प्रभुता को समाप्त करके देश को अपंग किया जाता है फिर भी हमारा एक अवयव जिसको सरकार के नाम से जानते हैं चुप्पी साध लेता है, फिर क्या करे ये भूभाग जिसके पास जु़बान नहीं है और आबादी जिसके हम अंग हैं डर के मारे उसकी जु़बान पर ताला लग जाता है। हम भी पाकिस्तान की तरह निरिह हैं क्योंकि जिस भाषा में पाकिस्तान हमसे बात करता है हम उसकी ही भाषा में उससे बात करते हैं बल्कि पाकिस्तान दुराग्रही होता है जिसको हम चरित्रगत नहीं कर पाते हैं और पाकिस्तान की भांति हम भी अमेरिकी साम्राज्य के सामने झुके रहते हैं, कभी-कभी हल्की सी आवाज़ इन्साफ के लिए बाहर आती है जैसाकि अभी ओबामा के साथ की गई मुलाकात में हमारे प्रधानमंत्री की आवाज बाहर आयी लेकिन फिर भी हम मजबूर हैं साम्राज्यवाद के समक्ष।
वाह रे पाकिस्तान! घटना तुम्हारे नागरिक हमारे घर में घुसकर कारित करें और फिर भी तुम उन्हें अपने घर ले जाने की जिद पर अड़े हुए हो। फहीम अरशद अन्सारी को किस कारण से तुम अपने देश ले जाना चाहते हो यह समझ से परे लगता है क्योंकि वह तुम्हारे देश का नागरिक भी नहीं है, वह नागरिक तो है भारत का। उसके खिलाफ तुम्हारे पास कोई मुकदमा भी नहीं है तो किस आधार पर तुम उसे ले जाना चाहते हो। यह फहीम अरशद अन्सारी तो 10.02.2008 को 00:10 बजे रामपुर में उ0प्र0 एस0टी0एफ0 के हाथों गिरफ्तार होना दिखाया गया है और उसके पास से तमाम चीजों के अलावा मुम्बई के नौ नक्शे लाइनदार कागज पर कलम से बनाये हुए और एक सादे कागज पर पेंसिल से बनाये हुए बरामद किया जाना दिखाया गया है। 10.02.2008 को रामपुर में बरामद किये गये नक्शों के आधार पर मुम्बई की घटना में भी उसे जोड़ दिया गया और कहा गया कि उसने घटना कारित करने के लिए नक्शे उपलब्ध कराये जबकि वह नक्शे मुकदमा अपराध संख्या-210/08 अन्तर्गत धारा 420/467/468/471/121ए थाना कोतवाली रामपुर में रखा गया और उसी नक्शे के आधार पर बाद में मुम्बई में भी फहीम अरशद अन्सारी और सबाउद्दीन को अभियुक्त बनाया गया और वहां उनके विरूद्ध परीक्षण हुआ। उस नक्शे को मुम्बई की घटना से जोड़ने के लिए फहीम अन्सारी को तथाकथित रूप से जानने वाले एक गवाह नारूद्दीन महबूब शेख़ को अभियोग पक्ष द्वारा प्रस्तुत किया गया, जिसने न्यायालय में अपने बयान में कहा है कि जनवरी, 2008 में वह काठमाण्डू घूमने गया था जहां अचानक उसकी मुलाकात फहीम अरशद अन्सारी से हुई जिसे वह बचपन से जानता था। मुलाकात पर फहीम अरशद अन्सारी उसे अपने कमरे पर ले गया और कमरे में उसने सबाउद्दीन से परिचित कराया जिसने फहीम अरशद अन्सारी से पूछा कि क्या फहीम ने लकवी द्वारा सौंपा काम पूरा कर लिया, जिस पर फहीम ने अपने बैग से कागज निकालकर सबाउद्दीन को सौंपा और सबाउद्दीन को कागज देते वक्त कागज नीचे गिर गया जिसको गवाह ने नक्शे बताये हैं। नक्शों को देखकर महबूब शेख़ ने फहीम से पूछा भी कि क्या उसने नक्शे बनाने का कारोबार शुरू कर दिया है जिसका जवाब फहीम ने नहीं दिया लेकिन सबाउद्दीन ने कहा कि उसके कुछ दोस्त पाकिस्तान से आने वाले हैं दोस्तों को जरूरत है, जिसपर महबूब शेख़ ने कहा कि नक्शे तो आसानी से प्राप्य हैं फिर उसे नक्शे तैयार करने की क्या जरूरत पड़ी, जिस पर सबाउद्दीन ने बताया कि बाजार में मिलने वाले नक्शों में सभी सूचना सही नहीं होती, इसलिए सही सूचना प्राप्त करने के उद्देश्य से यह नक्शे तैयार कराये गये हैं। इस प्रकार वह नक्शे जिनके आधार पर मुम्बई पर आतंकवादी हमला होना बताया जाता है काठमाण्डू में फहीम अरशद अन्सारी द्वारा सबाउद्दीन को जनवरी, 2008 में सौंप देने के बाद फिर उसी के पास से 10.02.2008 को कैसे बरामद हुए और फिर बरामद होने के बाद एस0टी0एफ0 के पास और एस0टी0एफ0 द्वारा न्यायालय में दाखिल कर देने के बाद न्यायालय की कस्टडी में रहते हुए मुम्बई आतंकवादी घटना में कैसे प्रयोग में लाये गये, यह सवाल जवाब तलब हैं और इनका जवाब न होते हुए भी पाकिस्तान हठधर्मी कर रहा है, फहीम अरशद अन्सारी को अपनी हिरासत में लेने की, जो जायज़ नहीं है और किसी भी आधार पर भारत के दोषियों को ले जाने का अधिकार पाकिस्तान को नहीं प्राप्त है।

राज्य सभा में सौ करोड़पति
अभी थोड़े दिन पहले मैंने लिखा था कि राजनीति में जन-प्रतिनिधि के नाम पर किस तरह के प्रतिनिधि हैं। आज की खबर पढ़कर मेरा विश्वास पक्का हो गया कि भारत की राजनीति में जनता का प्रतिनिधित्व करने वाला न के बराबर है। जैसा कि खबर है कि राज्य सभा में डी0 राजा सबसे गरीब सदस्य हैं, ये डी0 राजा जमीन के आदमी हैं और उसकी सतह से जुड़े हुए व्यक्ति हैं और सही अर्थ में जनता की आवाज उठाते रहते हैं। जिस सभा का बुद्धिजीवियों, वैज्ञानिक और जनता की इच्छाओं की समझ रखने वालों का सदन कहा गया है, आज वह मात्र धन पशुओं और धन पशुओं के लिए चरागाह मुहैया कराने वाले लोगों का सदन बनकर रह गया है।
जन सूचना अधिकार के अन्तर्गत प्राप्त सूचना में जहां यह कहा गया है कि राज्य सभा में 100 सदस्य करोड़पति हैं वहीं यह भी कहा गया है कि राहुल बजाज जिनकी सम्पत्ति 300 करोड़ रूपये की है वह महाराष्ट्र से आजाद उम्मीदवार की हैसियत से जीतकर राज्य सभा में बैठे हैं। जनता दल सेक्यूलर के राज्य सभा सदस्य एम0ए0एम0 रामास्वामी के पास 278 करोड़ रूपये, कांग्रेस की टी0 सुब्रह्मी रेड्डी के पास 272 करोड़ रूपये सम्पत्ति के स्वामी हैं। सबसे अधिक करोड़पति कांग्रेस पार्टी के जिनकी संख्या 33, फिर बीजेपी की जिनकी संख्या 21 और समाजवादी पार्टी के 7 सदस्य हैं। समाजवादी पार्टी की जया बच्चन के पास 215 करोड़ रूपये और अमर सिंह के पास 79 करोड़ रूपये की सम्पत्ति है। लेकिन भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के डी0 राजा और भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी) के सुमन पाठक के पास कोई सम्पत्ति नहीं है। असल में यही दोनों जनता के सच्चे प्रतिनिधि हैं और जनता की आवाज मुखर करने वाले प्रबल प्रहरी हैं। कबीर के सच्चे अनुयायी हैं और उनके बताये गये रास्ते ‘‘कबीरा खड़ा बाजार में लिए लुखाटा हाथ, जो घर फूंके आपनो वे आए मेरे साथ’’ पर चलने वाले सच्चे लोग हैं और मैं फिर कहूंगा कि यही गुलिस्तां को गुलज़ार करने वाले लोग हैं, जैसा कि इकबाल ने कहा है,
‘‘मिटा दे अपनी हस्ती को अगर कुछ मर्तबा चाहे,
कि दाना खाक में मिलकर गुल-ए-गुलज़ार होता है।’’
कहां बहक गया मैं भी बात कर रहा था राज्य सभा में 100 करोड़पतियों कि और बात करने लगा कबीर और इकबाल की। राज्य सभा में अधिकांश सदस्य विधान सभाओं से चुनकर आते हैं और जन प्रतिनिधियों का प्रतिनिधित्व करते हैं यानी जन प्रतिनिधियों के प्रतिनिधि होते हैं। मेरा मानना है कि जन प्रतिनिधि के नाम पर हर पार्टी में पार्टी के वफादार लोग या यूं कहिए कि पार्टी के साथ वफादारी के नाम पर राज्य सभा में पहुंचाये जाने वाले लोगों के वफादार लोग होते हैं क्योंकि पार्टियों को भी पैसा इन्हीं लोगों से पहुंचता है। यह बात रही धन-बल की लेकिन धन-बल को समर्थन देने के लिए छल-बल और बाहुबल भी जरूरी है। खबर यह भी बताती है कि राज्य सभा में आपराधिक चरित्र के कांग्रेस के 6 तथा भाजपा और बसपा के 4-4 सदस्य राज्य सभा में हैं। यही कारण है कि यह प्रतिनिधि सदन में पहुंचकर जन कल्याणकारी काम न करके जन विरोधी कामों को अपना समर्थन देते हैं। इस खबर पर यह मेरी अपनी टिप्पणी नहीं बल्कि मेरी भावनाओं का प्रतिबिम्ब है और यह प्रतिबिम्ब मैंने केवल इसलिए प्रस्तुत किया है कि इस पर ध्यान दीजिए कहीं यह प्रतिबिम्ब आपकी भावनाओं को तों नहीं है।

सवाल बुद्धिमत्ता का!

अपर पुलिस अधीक्षक स्पेशल टास्क फोर्स उ0प्र0 श्री अशोक कुमार राघव ने दि0 10.2.2008 को थाना सिविल लाइन, रामपुर में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराया, जिसके आधार पर मु0अ0सं0-209/08 अन्तर्गत धारा 25 आयुध अधिनियम तथा मु0अ0सं0-210/08 अन्तर्गत धारा 420/467/468/471/121ए भा0द0सं0 समय 3:30 पर पंजीकृत हुआ। यह दोनों मुकदमें फहीम उर्फ अरशद उर्फ हसन अम्मान के खिलाफ दर्ज किये गये। मुखबिर की सूचना पर एस0टी0एफ0 की टीम का करीब 22:30 बजे जंग बहादुर से पूछताछ किया और उससे प्राप्त सूचना के आधार पर सभी टीमें जंग बहादुर को लेकर बस स्टेशन रामपुर पहुंची और गाड़ियों को छोड़कर छिप गई। बस स्टैण्ड पर मौजूद जनता के व्यक्तियों से नकसद बताकर गवाही को कहा तो सभी लोग दुश्मनी होने के डर से अपना नाम बताये बिना चले गये। सब पुलिस कर्मियों ने आपस में एक-दूसरे की जामा तलाशी ले-देकर इतमिनान किया कि किसी के पास कोई नाजायज़ वस्तु नहीं थी कि तभी जंग बहादुर ने मुख्य मार्ग से बिलासपुर को जाने वाले रास्ते के मोड़ पर बायीं पटरी पर लगी पान व चाय की दुकान के पास खड़े दो व्यक्तियों की तरफ इशारा करके बताया कि मैरून कलर का बैग लिए हुए व्यक्ति शरीफ उर्फ सुहैल था और दूसरा उसका साथी था। इस पर अपर पुलिस अधीक्षक द्वारा हमराही फोर्स की मदद से एकदम घेर कर आवश्यक बल प्रयोग करके दि0 9.2.2008 व 10.2.2008 रात्रि समय 00:10 बजे पकड़ लिया। नाम-पता पूछा जिस पर एक ने अपना नाम शरीफ तथा उर्फ में कई एक नाम और दूसरे ने अपना नाम फहीम उर्फ अरशद उर्फ हसन अम्मान उर्फ साकिब उर्फ अबू जर्रार उर्फ साहिल पास्कर उर्फ समीर शेख पुत्र मो0 युसुफ अंसारी निवासी 4 नं0 303 रूम नं0 2409, मोतीलाल नगर नं0 2 एम0जी0 रोड, गोरेगांव (वेस्ट), मुम्बई बताया। जामा तलाशी में उसके दाहिने सुड्डे में खोंसा हुआ एक अदद स्टार पिस्टल 30 बोर जिसकी स्लाइड पर ततारा आम्र्स फैक्ट्री, पेशावर सी0ए0एल0-30 माउज़र अंकित था, बट पर 651 नं0 पड़ा था, दोनों तरफ धारीदार स्टार की चाप लगी थी, पिस्टल में एक मैगजीन जिसमें 6 अदद जिन्दा कारतूस भरी थीं, जिन्हें मैगजीन से निकाला गया, अतः पहनी जीन्स की बायीं जेब से 15 कारतूस जिन्दा बरामद हुए। पैन्ट की पिछली बायीं जेब से एक अदद पासपोर्ट, एक अदद कार्ड, 470 रूपये, जीन्स की पिछली दाहिनी जेब से नई दिल्ली से मुम्बई का 12.2.2008 का रेलवे टिकट दि0 10.2.2008 को अवध एक्सप्रेस का बान्द्रा टर्मिनल से मुजफ्फरपुर जंक्शन का टिकट तथा 9 अदद लाइनदार कागज में हाथ से पेन द्वारा बने हुए नक्शे, दो अदद कागजों में कम्प्यूटर के विषय में लिखी जानकारी और एक अदद सफेद कागज जिस पर पेन्सिल से नक्शा बना था, बरामद हुआ।

प्रथम सूचना रिपोर्ट में कहा गया है कि शरीफ ने अपर पुलिस अधीक्षक के पूछने पर यह भी बताया था कि वह बाबा के साथ फिदायीन का इंतजार करते रहे, बचा हुआ कारतूस मैगजीन व हैण्ड ग्रेनेड तथा ए0के0-47 बाबा लेकर चला गया था, वह और फिदायीन अलग-अलग रास्तों से अपने-अपने ठिकानों पर चले गये। उन असलहों को लेकर मुम्बई में फहीम उर्फ अरशद के बताये हुए स्थान पर फिदायीन घटना करनी थी। मुम्बई में घटना करने के लिए वह लोग उन असलहों को लेकर अलग-अलग रास्तों से मुम्बई जाने को थे। शरीफ और फहीम दिल्ली से मुम्बई जाते, सबा और अमर सिंह तथा आरिफ नौचंदी एक्सप्रेस से लखनऊ चले गये थे और उनका असलहा उनके साथ में था। फहीम से की गई पूछताछ में प्रथम सूचना रिपोर्ट में लिखा है कि वह सऊदी अरब काम करता था और वहां से पाकिस्तान टे्निंग करने गया था। बरामदशुदा नक्शों को उसने रायकी करके मुम्बई में बनाया था। उसे मुम्बई के महत्वपूर्ण प्रतिष्ठित जन तथा सरकारी दफ्तरों को रायकी करने व नक्शा बनाने के लिए भेजा गया था। मुम्बई में साहिल पावस्कर के नाम से एक कमरा किराये पर लेकर वहां तीन फिदायीन व उनके एक साथी को पहुंचाकर रूकना था, जिनको लेने के लिए वह रामपुर गया था। उसके पास से बरामद कागजात नक्शा आदि एक सफेद कपड़े में रखकर सील-मुहर किया जाना भी प्रथम सूचना रिपोर्ट में दर्ज है। लेकिन इस अभियुक्त को सी0आर0पी0एफ0 कैम्प, रामपुर के हमले में अभियुक्त नहीं बनाया गया।

फहीम अंसारी के दोनों मुकदमों में आरोप-पत्र प्रस्तुत हुआ, अंततः मुख्य न्यायिक मजिस्टे्ट रामपुर ने मुकदमें को सत्र सुपुर्द कर दिया और फहीम अंसारी के विरूद्ध प्रथम सत्र न्यायाधीश रामपुर ने आरोप रचित किये लेकिन साक्ष्य नहीं प्रस्तुत किया जा सका।

फहीम अरशद अंसारी के मुकदमें का विचारण लम्बित था और वह सेन्ट्रल जेल, बरेली में रखा गया था जहां से भारी सुरक्षा के बीच उसे रामपुर न्यायालय में लाया जाता था।

दि0 26.11.08 की रात जो मुम्बई में भयानक तबाही लेकर आई जो कभी भूलने लायक नहीं है, जगह-जगह पर आतंकवादी हमले हुए जिसमें बहुत सारे लोगों की निर्मम हत्या की गई। निर्दोष लोग मारे गये, सम्पत्ति को क्षति पहुंची और देश के जांबाज़ सपूतों हेमन्त करकरे, अशोक काम्टे और विजय सावस्कर को शहीद कर दिया। मुम्बई शहर के अनेक हिस्सों में आतंकवाद का तांडव और तांडव करने वाले केवल दस आतंकवादी बताये गये। दस में नौ मार डाले गये जिनको मुम्बई के मुसलमानों ने अपने कब्रिस्तान में दफनाने की जगह नहीं दी, उनके शवों को जे0जे0 हास्पिटल के वातानुकूलित मुर्दाघर में रखा गया, लेकिन देश यह जानता रहा कि नौ लाशें मुर्दाघर में हैं लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने गुपचुप तरीके से उन शवों को ऐसी जगहों पर दफनाया जिनका पता किसी को न लग सका, यहां तक कि दफनाये जाने की जानकारी भी महाराष्ट्र विधान परिषद् में पूछे गये सवाल के जवाब से मिली।

मैं इस सवाल को नहीं उठा रहा हूं कि हेमन्त करकरे जैसे ईमानदार और जांबाज़ देशभक्त कैसे मारे गये, उनकी जैकेट कहां गई, उनके बार-बार मदद मांगे जाने पर भी समय से मदद क्यों नहीं पहुंचायी गई, केवल दस आतंकियों ने मुम्बई के अनेक हिस्सों में कैसे तबाही मचायी, सबद हाउस में क्या हो रहा था, इसराइली नागरिक निर्वाद रूप से महाराष्ट्र तथा देश के दूसरे हिस्सों में कैसे विचरण करते रहते हैं, उनके पास से प्रतिबंधित सेटेलाइट फोन बरामद होने पर उनके खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं की जाती, उनके लैपटाप और कम्प्यूटर से प्रसारित संदेशों की छानबीन क्यों नहीं की जाती, सी0आई0ए0 मोसाब, आई0एस0आई0 और एफ0बी0आई0 के रिश्तों को क्यों नहीं उजागर किया जाता, एफ0बी0आई0 बिना इज़ाज़त अनीता उदैय्या को किस तरह अमेरिका उठा ले जाती है और फिर भारत में लाकर छोड़ जाती है, कोल्ड मैन हेडली का सी0आई0ए0 और एफ0बी0आई0 से क्या रिश्ता है, उसे भारत की जांच एजेन्सी के हवाले क्यों नहीं किया जाता, महाराष्ट्र और गोवा के सबद हाउस में क्या गतिविधियां चलती हैं, यह सारे के सारे सवाल अभी नहीं तफ्शील से फिर कभी। आज तो मैं सिर्फ और सिर्फ फहीम अंसारी तक अपने को सीमित रखता हूं।

मुम्बई में हुई घटना पर मु0अ0सं0-182/08 कायम हुआ और डी0सी0बी0सी0आई0डी0, यूनिट-3 मुम्बई द्वारा उसकी विवेचना शुरू की गई। विवेचना के दौरान डी0सी0बी0सी0आई0डी0 के लोग रामपुर से फहीम अंसारी को मुम्बई के केस के संबंध में दिसम्बर, 2008 में पूछताछ करने के लिए ले गये और मुम्बई ले जाने के बाद यह साबित करने की कोशिश हुई कि फहीम अंसारी ने मुम्ब ई में रहकर नक्शा बनाया और रायकी की और इस काम के लिए उसने एक महीने के लिए मकान किराये पर लिया लेकिन वह महीना कब से कब तक का था, यह नहीं बताया गया और न ही यह बताया गया है कि कमरा किराये पर कहां लिया गया था। फिर भी पुलिस कहती है कि फहीम अंसारी ने मुम्बई में रहकर रायकी किया और नक्शे बनाये।

इसी तरह पुलिस का एक गवाह नारूद्दीन महबूब शेख सामने लाया गया जिसने बताया कि वह जनवरी, 2008 में काठमाण्डू गया था जहां उसे फहीम अंसारी मिला और अपने कमरे पर ले गया, वहां उसके कमरे पर एक और आदमी पहुंचा जिसने कुछ देर रूकने के बाद पूछा कि क्या फहीम अंसारी ने लखवी द्वारा सौंपा गया काम पूरा कर दिया है जिस पर फहीम अंसारी ने अपने बैग से कुछ कागजात निकालकर उस आदमी को दिया, जो देते वक्त नीचे गिर गया, जिसे नारूद्दीन ने देखा कि वह नक्शा था और उससे कहा कि क्या उसने नक्शा बनाने का धन्धा शुरू कर दिया था, जिसका फहीम अंसारी ने कोई जवाब नहीं दिया। फिर बाद में कहा कि उसके कुछ दोस्त पाकिस्तान से मुम्बई घूमने जा रहे हैं जिनको नक्शे की जरूरत है। बाद में दूसरे दिन नारूद्दीन को फहीम अंसारी के साथ उसके होटल के कमरे में मिलने वाला व्यक्ति मिला जिसकी शिनाख्त सबाउद्दीन के रूप में की गई है जिसने नारूद्दीन के पूछने पर बताया कि फहीम अंसारी मुम्बई जा चुका था। रामपुर से फहीम अंसारी के साथ उसके पास से बरामद कागजात भी मुम्बई के न्यायालय में तलब किये गये थे। जिनमें वो नक्शे भी हैं जिन्हें नारूद्दीन ने फहीम के होटल के कमरे में फहीम द्वारा सबाउद्दीन को देते हुए देखा था। सबाउद्दीन 10.2.2008 को लखनऊ में गिरफ्तार किया गया लेकिन नक्शे उसके पास से नहीं बरामद हुए।

नक्शे बरामद हुए फहीम अंसारी के पास से रामपुर में, उसकी गिरफ्तारी दि0 10.2.2008 को, जिसे लेकर वह मुम्बई जाने को था लेकिन मुम्बई न जा सका और रामपुर में गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया।

मैंने तथ्य आपके सामने रख दिया, जनवरी, 2008 में जिसकी-तारीख गवाह का नहीं पता, फहीम अंसारी ने अपने हाथ का बनाया हुआ नक्शा सबाउद्दीन को दिया फिर भी वो नक्शे सबाउद्दीन के पास से बरामद न होकर फहीम अंसारी से बरामद होते हैं और फहीम अंसारी के बरेली जेल में निरूद्ध रहते हुए उनका इत्तेमाल मुम्बई में बताया जाता है। दोषी कौन? एक प्रश्न बुद्धिमत्ता!

मेरा प्यारा हिन्दुस्तान, प्यारा-प्यारा हिन्दुस्तान
हिन्दू-मुस्लिम आंखें इसकी, आर्या का दिल
गंगा-यमुना बहते-बहते, जहां पर जाते मिल
तरह-तरह के बूटे-पौधे, भांति-भांति इंसान
मेरा प्यारा हिन्दुस्तान, प्यारा-प्यारा हिन्दुस्तान।

काशी जैसी सुबह मिले है, अवध के जैसी शाम
हर कोई को लुत्फ मिले है, खास हो चाहे आम
हरियाणा हो या दिल्ली, यू0पी0 चाहे राजस्थान
मेरा प्यारा हिन्दुस्तान, प्यारा-प्यारा हिन्दुस्तान।

इल्म व हुनर का गह्वारा है, प्यार सी प्यारी धरती है
वलियों ऋषियों मुनियों की, बसती यहां पर बस्ती है
मोड़-मोड़ पर भजन-कीर्तन, गली-गली अज़-आन
मेरा प्यारा हिन्दुस्तान, प्यारा-प्यारा हिन्दुस्तान।

कुछ दिन पहले नम थी आंखें, रंज व अलम था छाया
चारों तरफ कोहराम मचा था, दहशत का था साया
मक्कारी से काबिज था गोरा, मलैच्छ शैतान
मेरा प्यारा हिन्दुस्तान, प्यारा-प्यारा हिन्दुस्तान।

टीपू ने फुंकार भरी, तो अहल-ए-वतन ललकारे
शेख अज़ीज भी फतवे से गोरों से धिक्कारे
गरम किया था दिलवालों ने शामली मैदान
मेरा प्यारा हिन्दुस्तान, प्यारा-प्यारा हिन्दुस्तान।

चन्द्रशेखर, बिस्मिल, मदनी और बढ़े आजाद
गली-गली ललकारा उनको, जनता से की फरियाद
मेरठ, दिल्ली, कानपुर, झांसी, मच उठी घमशान
मेरा प्यारा हिन्दुस्तान, प्यारा-प्यारा हिन्दुस्तान।

सबके हक का रखवाला है, सबके दिल का प्यारा
कल्चर इसका मशरिक वाला, बना है चांद-सितारा
अवामी इसका तर्ज-ए-हुकुमत, लोकतंत्र है शान
मेरा प्यारा हिन्दुस्तान, प्यारा-प्यारा हिन्दुस्तान।

- मो0 तारिक कासमी
( मेरे मोवाक्किल मो0 तारिक कासमी ने कारागार से कविता लिख कर भेजी है जिसको प्रकाशित किया जा रहा है )

loksangharsha.blogspot.com