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राज्य सभा में सौ करोड़पति
अभी थोड़े दिन पहले मैंने लिखा था कि राजनीति में जन-प्रतिनिधि के नाम पर किस तरह के प्रतिनिधि हैं। आज की खबर पढ़कर मेरा विश्वास पक्का हो गया कि भारत की राजनीति में जनता का प्रतिनिधित्व करने वाला न के बराबर है। जैसा कि खबर है कि राज्य सभा में डी0 राजा सबसे गरीब सदस्य हैं, ये डी0 राजा जमीन के आदमी हैं और उसकी सतह से जुड़े हुए व्यक्ति हैं और सही अर्थ में जनता की आवाज उठाते रहते हैं। जिस सभा का बुद्धिजीवियों, वैज्ञानिक और जनता की इच्छाओं की समझ रखने वालों का सदन कहा गया है, आज वह मात्र धन पशुओं और धन पशुओं के लिए चरागाह मुहैया कराने वाले लोगों का सदन बनकर रह गया है।
जन सूचना अधिकार के अन्तर्गत प्राप्त सूचना में जहां यह कहा गया है कि राज्य सभा में 100 सदस्य करोड़पति हैं वहीं यह भी कहा गया है कि राहुल बजाज जिनकी सम्पत्ति 300 करोड़ रूपये की है वह महाराष्ट्र से आजाद उम्मीदवार की हैसियत से जीतकर राज्य सभा में बैठे हैं। जनता दल सेक्यूलर के राज्य सभा सदस्य एम0ए0एम0 रामास्वामी के पास 278 करोड़ रूपये, कांग्रेस की टी0 सुब्रह्मी रेड्डी के पास 272 करोड़ रूपये सम्पत्ति के स्वामी हैं। सबसे अधिक करोड़पति कांग्रेस पार्टी के जिनकी संख्या 33, फिर बीजेपी की जिनकी संख्या 21 और समाजवादी पार्टी के 7 सदस्य हैं। समाजवादी पार्टी की जया बच्चन के पास 215 करोड़ रूपये और अमर सिंह के पास 79 करोड़ रूपये की सम्पत्ति है। लेकिन भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के डी0 राजा और भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी) के सुमन पाठक के पास कोई सम्पत्ति नहीं है। असल में यही दोनों जनता के सच्चे प्रतिनिधि हैं और जनता की आवाज मुखर करने वाले प्रबल प्रहरी हैं। कबीर के सच्चे अनुयायी हैं और उनके बताये गये रास्ते ‘‘कबीरा खड़ा बाजार में लिए लुखाटा हाथ, जो घर फूंके आपनो वे आए मेरे साथ’’ पर चलने वाले सच्चे लोग हैं और मैं फिर कहूंगा कि यही गुलिस्तां को गुलज़ार करने वाले लोग हैं, जैसा कि इकबाल ने कहा है,
‘‘मिटा दे अपनी हस्ती को अगर कुछ मर्तबा चाहे,
कि दाना खाक में मिलकर गुल-ए-गुलज़ार होता है।’’
कहां बहक गया मैं भी बात कर रहा था राज्य सभा में 100 करोड़पतियों कि और बात करने लगा कबीर और इकबाल की। राज्य सभा में अधिकांश सदस्य विधान सभाओं से चुनकर आते हैं और जन प्रतिनिधियों का प्रतिनिधित्व करते हैं यानी जन प्रतिनिधियों के प्रतिनिधि होते हैं। मेरा मानना है कि जन प्रतिनिधि के नाम पर हर पार्टी में पार्टी के वफादार लोग या यूं कहिए कि पार्टी के साथ वफादारी के नाम पर राज्य सभा में पहुंचाये जाने वाले लोगों के वफादार लोग होते हैं क्योंकि पार्टियों को भी पैसा इन्हीं लोगों से पहुंचता है। यह बात रही धन-बल की लेकिन धन-बल को समर्थन देने के लिए छल-बल और बाहुबल भी जरूरी है। खबर यह भी बताती है कि राज्य सभा में आपराधिक चरित्र के कांग्रेस के 6 तथा भाजपा और बसपा के 4-4 सदस्य राज्य सभा में हैं। यही कारण है कि यह प्रतिनिधि सदन में पहुंचकर जन कल्याणकारी काम न करके जन विरोधी कामों को अपना समर्थन देते हैं। इस खबर पर यह मेरी अपनी टिप्पणी नहीं बल्कि मेरी भावनाओं का प्रतिबिम्ब है और यह प्रतिबिम्ब मैंने केवल इसलिए प्रस्तुत किया है कि इस पर ध्यान दीजिए कहीं यह प्रतिबिम्ब आपकी भावनाओं को तों नहीं है।

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