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1964 की होली के बाद


सन् 1964 की बात है। उस समय मैं इण्टरमीडिएट के पहले वर्ष का छात्र था, होली की छुट्टियां खत्म हुईं। सब स्कूल आये, मेरे एक सहपाठी बी0एस0 चैहान जो इस समय लखीमपुर खीरी में वकालत करते हैं, मुझसे मिलते ही बोले, ‘‘हरनाम सिंह तुमसे माफी मांगना चाहते हैं।’’ उत्तर में मैंने कहा, कहां हैं हरनाम सिंह? उनको माफी मांगने की जरूरत नहीं है, चलों मैं ही उनसे माफी मांगे लेता हूं क्योंकि उन्होंने मेरे साथ जो कुछ किया था वह प्रतिक्रिया स्वरूप था और वह प्रतिक्रिया मेरे भाषण से उनका दिल दुखने के कारण हुई थी, इसलिए उनका दिल दुखाने का दोषी होने के कारण मेरा माफी मांगना जरूरी था। चैहान ने कहा, शायद अभी वह कमरे से नहीं आये हैं इसलिए मैंने चैहान से उनके कमरे पर चलने को कहा और कमरे की ओर चलने पर सामने से हरनाम सिंह आते हुए दिख गए इसलिए हम स्कूल के बरामदे में रूके, जहां पहुंचते ही हरनाम सिंह ने मुझसे माफी मांगी और मुझे माफी मांगने का मौका नहीं दिया।
माफी इसलिए मांगी गई थी कि होली की छुट्टियों के पहले हरनाम सिंह ने सम्प्रदाय सूचक गाली देकर मुझपर हाथ उठाया था। हाथ, कक्षा के कमरे में उस वक्त उठाया था जब लोगों के कहने पर बेमन से मैंने नाश्ते में मूंगफली बांटना शुरू किया था, हरनाम सिंह के हाथ उठाते ही मेरे सभी सहपाठी उनपर टूट पड़े और मुझे बचाया। यह घटना एकाएक ही नहीं घटित हुई थी बल्कि सहपाठियों के बहुत कहने पर मूंगफली बंटवाने के लिए मैंने किसी ऐसे व्यक्ति का चयन किया जिसे हिन्दू और मुसलमान दोनों ही अछूत समझते थे, लेकिन मेरी बात नहीं मानी गई और मूंगफली मुझसे ही बंटवाने पर जोर दिया गया।
कारण, सम्प्रदाय सूचक गाली के साथ मारने के लिए हाथ पकड़ने का एक ही था कि इस घटना से पूर्व महोली, जिला सीतापुर में सर्वोदय की एक जनसभा थी जिसमें सम्मिलित होने के लिए हम सब को छुट्टी दे दी गई थी। अपनी आदत के मुताबिक मैं सभा में सबसे आगे बैठा था। सारे वक्ताओं का भाषण मैंने ध्यानपूर्वक सुना था और जिस समय अन्तिम वक्ता अपना वक्तव्य समाप्त करने को थे प्रिंसिपल साहब को मैंने देखा कि उनकी नजरें किसी को तलाश रही थीं और उनकी नजरें जिसे तलाश कर रही थीं उसे न पाकर बैठते-बैठते मुझसे बोल पड़े, ‘‘क्या कुछ बोलोगे?’’ मैं उनकी इच्छा का आदर करते हुए बोल पड़ा, ‘‘जैसा आपका आदेश।’’ इस पर उन्होंने उस आखिरी वक्ता के बोलने के बाद ही मुझे बोलने का आदेश दिया और वहां बैठकर मैंने यह पाया था कि कोई भी वक्ता सामाजिक गैर बराबरी के खिलाफ नहीं बोला था, इसलिए उस अछूते विषय को मैंने छुआ और भाषण के दौरान हरनाम सिंह की टोका-टाकी का जवाब देता हुआ मैंने अपना भाषण समाप्त किया और फिर इसी घटना की प्रतिक्रिया थी, हरनाम सिंह का मेरे ऊपर हाथ उठाना।
हरनाम सिंह मेरे ऊपर हाथ उठाने के बाद अपनी जगह परेशान और मैं अपनी जगह, लेकिन इस घटना के तुरन्त बाद होली की छुट्टियां हो जाने के बाद किसी को किसी से बात करने का मौका नहीं मिला और छुट्टियां समाप्त होते ही दोनों ही एक दूसरे से माफी मांगने के लिए तैयार थे, जिसे आसान कर दिया था बी0एस0 चैहान ने।

आज भी 1964 की होली के बाद की यह घटना मैं नहीं भुला पाया हूं।

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