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मानव अधिकार आयोग
आयोग का उद्देश्य - भारतीय संविधान ने अपने नागरिकों के इंसान की तरह सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार प्रदान कर रखा है। इंसान, इंसान ही होता है हैवान नहीं हो सकता, फिर भी हमारे देश का एक वर्ग इंसान को हैवान की तरह बांधने, बांधने के बाद छोड़कर हंकाने और कभी-कभी इंसान के सम्मान को छोड़कर बाकी सभी सुख-सुविधाएं उन्हें मुहैया करने के पक्ष में है। अब तो इस मशीनी युग में सारा काम मशीन से किया जाता है और उन मशीनों को चलाने वाले इंसानी दिमाग होते हैं। इस मशीनों का मालिक मशीनों को ठीक-ठाक रखने के लिए इसके रख-रखाव पर ठीक-ठाक खर्च करता है, उसी तरह इस मशीनी युग से पहले जब हमारा समाज जानवरों पर निर्भर करता था, खेती से लेकर ढुलाई तक काम और उससे पहले राजा महाराजा लड़ाई में जानवरों का इस्तेमाल किया करते थे। राजाओं की सेना में घोड़ों और हाथियों के अस्तबल हुआ करते थे और उनकी देखभाल के लिए भी इसी तरह के इंसान लगाये जाते थे जिस तरह आज मशीनों की देखभाल के लिए लगाए जाते हैं। खेती और ढुलाई का काम जानवरों से लेने वाले लोग भी जानवरों की देखभाल इतनी करते थे कि एक-दूसरे में होड़ लगती थी, किसका जानवर कितना अच्छा और मजबूत है। आज हमारा कारपोरेट पुराने राजाओं और खेतीहरों की तरह जानवर की जगह इंसान पाल रहा है और ये पालतू इंसान बहुत खुश होता है, कारपोरेट से अच्छी सुख-सुविधाएं प्राप्त करके।
भारतीय समाज में जानवरों की तरह अच्छी सुख-सुविधा प्राप्त करके जी-तोड़ मेहनत करने की ललक पैदा हुई है। विदेश जाकर अच्छे काॅरपोरेट्स के अस्तबल में रखे जाते हैं, कहीं से उनको किसी तरह से चिन्ता न हो और पूरी लगन के साथ अपने मालिक की सेवा करें और अपनी मेधा उसके लिए ही खर्च करें, हमारा देश हमारा समाज उनके लिए कुछ नहीं है और जिसमें उनका भला है उसी में लगे हैं। यही कारपोरेट हमारे देश में अपनी सत्ता स्थापित करने के लिए प्रयासरत है, अपनी कम्पनियों से मिलने वाला मुनाफा हम देशवासियों को आपस में लड़ाने पर भी खर्च करता है और साथ ही उस मशीनरी पर भी जो देश का प्रशासन चलाती है।
आये दिन देश को कमजोर करने के उद्देश्य से देश के अलग-अलग हिस्सों में ब्लास्ट होते हैं और उन ब्लास्ट में असली गुनहगार गिरफ्त में नहीं आते और बेगुनाहों को पकड़ कर उनका इन्काउन्टर कर दिया जाता है या फिर मौका पाकर उन्हें किसी ब्लास्ट में अभियुक्त बना दिया जाता है या फिर ऐसी घटना में अभियुक्त बनाया जाता है जो कभी घटित न हुई हो। बेगुनाहों को पकड़कर हफ्तों-महीनों और कुछ एक को वर्षों प्रताड़ित किया जाता है और बाद में उनकी गिरफ्तारी दिखाई जाती है और इस प्रकार उनसे सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार छीन लिया जाता है। बेगुनाहों को उनकी गिरफ्तारी की असली तारीख से फर्जी तारीख तक के बीच में जिस तरह प्रताड़ित किया जाता है उस पर मानव अधिकार आयोग यह कहकर विचार नहीं करता कि बाद में उनके खिलाफ मुकदमा कायम हुआ है और उनकी गिरफ्तारी सही है जबकि मानव अधिकार आयोग का यह कर्तव्य बनता है कि देश के नागरिकों द्वारा की जाने वाली इस प्रकार की शिकायतों की जांच अपने स्तर से करे और उसी एजेन्सी से वह जांच न कराए जिसके खिलाफ पीड़ित व्यक्ति की शिकायत है। यदि ऐसा न किया गया तो पुलिस उत्पीड़न और फर्जी इन्काउन्टर का यह सिलसिला बन्द होने वाला नहीं है। आयोग के लिए अपने विवेक इस्तेमाल करना आवश्यक है न कि शासन और प्रशासन का एक अंग बना रहना।

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